SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Pog पञ्चतन्त्र "इस दुनिया में नित्य अपने कर्म-फल को भुगतने वालों तथा नियत क्रियाओं वाले देहधारियों से उनके अन्तर्गत भावों से उपार्जित . शुभ या अशुभ काम जैसा बनना होता है वैसा बनता है, इसमें सोचने-विचारने का कोई कारण नहीं है। अगर मैं कहीं दूसरी जगह भी जाऊँ तब भी किसी मांसाहारी जानवर से मैं मारा जाऊंगा उससे अच्छा सिंह से मारा जाना ही होगा। कहा भी है "बड़ों की बराबरी करने में अगर विपत्ति आवे तब भी ठीक है, पहाड़ तोड़ने के प्रयत्न में हाथी के दांत टूट जाने पर भी वह प्रशंसनीय है। अथवा "जैसे मदजल का लोभी भौंरा हाथी के कान से मारा जाकर भी प्रशंसनीय है, उसी प्रकार बड़ों से पराभव पाकर भी नीच प्रशंसनीय होता है।" ऐसा निश्चय करके लड़खड़ाते हुए वह धीरे-धीरे संजीवक सिंह के घर के आगे पहुंचकर कहने लगा , "अरे, यह ठीक ही कहा है कि "राजा का घर अनेक झूठ बोलने वाले दुष्टों और अनार्यों से घिर कर, छिपे सर्प से युक्त घर के समान, जलते हुए जंगल के समान, अथवा सुन्दर कमलों की कांति से शोभित पर ग्राहों से भरे सरोवर के समान है। भयभीत आदमी समुद्र की तरह राजा के घर में घुसते हुए डरते हैं।" इस तरह बोलते हुए संजीवक दमनक के कहे अनुसार पिंगलक की भंगिमा देखकर डरते हुए अपने शरीर को सिकोड़कर बिना उसे प्रणाम किये हुए ही दूर जाकर बैठ गया। पिंगलक भी उसे इस प्रकार देखकर दमनक की बात पर विश्वास करते हुए उसके ऊपर क्रोध से टूट पड़ा। सिंह के कठोर नखों से अपनी पीठ चिर जाने पर भी संजीवक उसका पेट सींगों से फाड़ने के लिए किसी प्रकार उससे अलग होकर, सींग से उसे मारने के लिए तैयार होकर लड़ाई में उसके सामने डट गया । उन दोनों को फूले पलाश के वृक्ष जैसे बने और एक दूसरे को मारने पर तैयार देखकर करटक ने दमनक
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy