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________________ ५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान ७५. १०. वस्तु पडने का उपाय ३० की.३० को धारण करके भी आपने कुछ धारण किया कहा जायगा ? नही क्योंकि इस प्रकार की पृथक-पृथक स्वतत्र पदार्थो की सत्ता लोक मे है ही नही। न १७ का पृथक पदार्थ लोक मे आपको कहा देखने को मिलेगा? और इसलिये यह ३० पथक -पृथक चित्रण वस्तु के अनुसार न हो सकेगे। ___बस यही वह भल है जिसे मुख्यत दूर करना है । आपने इन ३० की बात पहिले भी पढी या सुनी अवश्य है, पर उनका भाव अब तक भी कोई अखडित रूप मे धारण नहीं हो पाया है। तभी तो आप चारित्र की बात को पृथक् स्वतत्र वस्तु और ज्ञान को पृथक् स्वतत्र वस्तु समझकर प्रश्न करने लगते हो। जैसा कि परसो के प्रकरण मे प्रश्न उपस्थित हुआ था कि ज्ञान का कार्य हेय व उपादेय के विवेक सहित सब कुछ सहज ग्रहण करना है या इनके विवेक से रहित । और तब मैने उत्तर दिया था कि दोनों पृथक्-पृथक् दो पर्यायों की अपेक्षा सत्य है। चारित्र की अपेक्षा पहिली बात और ज्ञान की अपेक्षा दूसरी। परन्तु संतुष्ट न होकर आप फिर पूछ बैठे थे कि आगम मे तो इस प्रकार हेयोपादेय का विवेक करने वाला ज्ञान को ही बताया है। बस यही तो है वह पृथकता जिसके प्रति मै सकेत कर रहा हूँ, और इसी का स्पष्टीकरण उस रोज इस ढग से किया था कि भाई ! ज्ञान व चारित्र भिन्न-भिन्न स्वतत्र वस्तुए थोडे ही है, कि जब चारित्र होगा तो ज्ञान न होगा और जब ज्ञान होगा तो चारित्र न हो सकेगा। वह तो . सर्वत्र ज्ञान रस वाला ही प्रमुखत : है। उसका । चारित्र भी तो ज्ञानात्मक है और ज्ञान भी चारित्रात्मक है। दोनो एक अखड रस रूप है । चारित्र की ओर झुके हुए अर्थात् जीवन मे हेय का त्याग व उपादेय का ग्रहण करके जीवन को ढालने का प्रयत्न करने, अथवा चरण करने के प्रति झुके हुए ज्ञान का नाम ही चारित्र है, और इसलिये हेपोपादेय का विवेक रखने वाला ज्ञान को कहना कौन झूठ है। भेद करके कथन करने में तो चारित्र का काम कहेगे और अखड
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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