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________________ - ५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान ६८ ८. आगम ज्ञान की सत्याथता भी करने सीख लिये हों, भल ही अनेकों को आगम पढ़ा दिया हो और पढ़ा रहा हो, भले ही लोग मेरी विद्वता की प्रशंसा करत हो, भले ही मैने बड़े-बड़े शास्त्रार्थो मे विजय प्राप्त की हो, पर जीवन मे से तो वह रस आने पाया नही जिसके प्रति कि यहा संकेत किया गया है।" और इसलिये इन संशयादि के सद्भाव मे इस कारण प्रकार का निर्णय किया गया भी आगम ज्ञान मिथ्या ज्ञान है । अब प्रश्न होता है, फिर कैसे किया जाये । आगम ही आज के अध्यात्म ज्ञान का प्रमुख आधार है और ८. आगम ज्ञान इस ही बेकार सिद्ध कर दिया गया, तो क्या की सत्यार्थत अव जीवन विकास का कोई उपाय नही ? नही ऐसा नही है भाई! आगम तीसरी चक्षु है । यह बिल्कुल बेकार हो ऐसा नहीं है । वर्तमान काल मे इसकी उपलब्धि होना हमारा बड़ा भारी सौभाग्य है । रुढि मात्र से इसको न पढकर यदि बुद्धि पर जोर दे देकर पढ़े, यदि उतावल न करे, शास्त्र पूरा करने की बजाये इसके एक एक शब्द पर एक एक वाक्य पर सूक्ष्म व गहन विचार करे, उसक सकेतो को अपने जीवन मे खोजे, अन्दर मे खोजे, बाहरमे खोजे, और उस समय तक चैन न पावे जब तक कि उस वाक्य का वाक्यार्थ तुझे मिल नहीं जाता। और इस प्रकार धीरे धीरे करके अनेकों वाक्यार्थों का परिचय मिल जाने पर उनके दृष्टसयौगादिक व अदृष्ट प्रभाव आदिक को यथा योग्य पढ़ने का प्रयत्न करते हुए, उनका परस्पर यथा योग्य रीति से सम्मेलन बैठाये, तो अवश्यमेव आगम के उपकार का भान हुए, बिना न रहे, अर्थात् उस आत्मविज्ञान की प्राप्ति किये बिना तू न रहे । ऊपर वाले प्रकरणों मे वास्तव मे. आगम का निषेध नहीं किया है, आगम का दोष नही बताया है, आगम को मिथ्या नही कहा है, आगम पढ़ने वाले का दोष बताया है, और उसी के ज्ञान को मिथ्या कहा है । आगम तो सर्वदा ग्राह्य ही है, वह तो अपने अन्दर
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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