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________________ ५. सम्यक व मिथ्याज्ञान ६५ ६. सम्यग्ज्ञान में अनुभव का स्थान साहित्य या आगम नही पढ़ा ? डाक्टर भावे जो आज भारतीय अणु विज्ञान शाला के अध्यक्ष है बड़े विद्वान व्यक्ति है । अणु संबधी कोई बात नहीं जो उन्होने न पढ़ी हो, तथा जो तर्क व युक्ति की कसौटी पर कसकर उन्होंने धारणा मे न बैठा रखी हो । फिर भी सफलता क्यों नही ? कारण एक ही है कि यह सारा ज्ञान वास्तव में शाब्दिक ज्ञान है, यह सारा निर्णय शाब्दिक निर्णय है, पर अणु : विज्ञान का कोई स्पष्ट अखंड चित्रण हृदय पट पर अभी अकित नहीं हो सका है । उसे अंकित करने का तो प्रयास किया जा रहा है । इसी का नाम तो खोज ( Research ) है । यदि वह चित्रण अंकित हो गया होता तो खोज की क्या आवश्यकता रहती। वास्तव मे अणु सिद्धान्त का शाब्दिक परिचय पा लेने पर भी उसके चित्रण या अनुभव या दर्शन के अभाव के कारण , उनके हृदय मे तत्सम्बन्धी सशयादि बराबर बेठे हुए है, जिनको दूर करने के लिये कि वह अनुसंधान कर रहे है पर सफल हो नही पाते। इसलिये उनके इस अणु सबंधी ज्ञान को सम्यक कहोगे या मिथ्या ? स्पष्ट है कि उनका वह अणु ज्ञान सम्यक् नही, मिथ्या है । आत्म विज्ञान की अपेक्षा नही, अणुविज्ञान की अपेक्षा । इसलिये सिद्धान्त अचल रहा कि अखंड चित्ररूप ज्ञान या अनुभव के अभाव मे उस विषय के अंगों का खंडित शाब्दिक ज्ञान मिथ्या ज्ञान है । रूस व अमेरिका के पास भी शाब्दिक ज्ञान उतना ही तथा वह ही है, पर उसके वैज्ञानिकों के हृदय पट पर तत्सबंधी एक स्पष्ट चित्रण यानी अखंड चित्रण अकिंत है । अर्थात् उन्हे तत्संबधी अनुभव है । इसी से अणु ज्ञान की अपेक्षा उनका ज्ञान सम्यक् है। इसी प्रकार हम देखते है कि एक इंजीनियर जिसने १६ साल शिक्षण में खोये, वह एक मशीन को ठीक करने मे कदाचित फैल हो जाता है, पर एक अनुभवी मिस्त्री जिसको पढ़ाई के नाम कुछ नहीं आता, उसे तुरन्त ही ठीक कर देता है । कारण ? उसका
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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