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________________ २२. निक्षेप ७६८ . १. ध. 1 पु. १ | श्ल १२/पृ. १७ ६. निक्षेपों का नयों मे श्रन्तर्भाव "ज्ञान प्रमाणमित्याह रूपायो न्यास इत्युच्यते । नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽयं परिग्रहः | ११ | " अर्थः- अभेद ज्ञान को प्रमाण कहते है । नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने को न्यास या निक्षेप कहते है । और ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं । इस प्रकार युक्ति से अर्थात प्रमाण नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का ग्रहण अथवा निर्णय करना चाहिये । ( ति.प. 1१1८३ ) ( व्य . पु ३ | श्ल. १५.१८ ) "वस्तु प्रमाणविषयं २. वृ न च ११७२ यविषयोभवति वस्त्वेकाशः | यो द्वाभ्या निर्णीतार्थं मनिक्षेपे भवेद्विषय. ११७२।” 1 अर्थ -- अखण्ड वस्तु प्रमाण का विषय है। नय का विषय वस्तु का एक अश है । जो इन दोनो नय व प्रमाण द्वारा निर्णीत पदार्थ है वही निक्षेप का विषय है । ३प.।ध।पू०।७३६-७४० " ननु निक्षेपो न नयो न च प्रमाण न चाशक तस्य । पृथगुद्देश्यत्वादपि पृथगिव लक्ष्यं स्वलक्षणादिति चेत् । ७३९। सत्य गुणसापेक्षो सविपक्ष. स च नय. स्वयक्षिपति । य इह गुणाक्षेपः स्यादुपचरित. केवल स निक्षेप । ७४० ।” अर्थ - का कार कहता है कि निक्षेप न तो नय है तथा न प्रमाण है तथा न प्रमाण या उसका अश है, परन्तु निक्षेप का पृथक् उद्देश होने से अपने लक्षण से वह पृथक ही लक्षित होता है । ७३९| इस के उत्तर मे कहते है कि ठीक है, परन्तु गुणो की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाले तथा विपक्ष की अपेक्षा रखने वाले जो नय है, उन
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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