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________________ २२ निक्षेप ७५४ ६. द्रव्य निक्षेप जो कुछ भी अन्य पदार्थ उस वर्तमान ज्ञाता के स्वामित्व मे पड़े है उन सबको 'ज्ञाता' कहना तद्वयतिरिक्त नो-आगम-द्रव्य-निक्षेप है । वे पदार्थ कर्म व नो कर्म के भेद से दो प्रकार के हो जाते है । ज्ञानावरणादि कर्मो को 'कर्म' कहते है और धन आदि वाह्य पदार्थों को 'नो कर्म' कहते है। वर्तमान ज्ञाता के तीनो कालो के शरीरो की अपेक्षा, ज्ञायक शरीर नो आगम के तीन भेद हो जाते है-भूत, वर्तमान व भावि । वर्तमान में उपयोग रहित ऐसे ज्ञाता जीव का भूत कालीन शरीर कदाचित 'ज्ञाता' कहा जा सकता है जैसे मारीच के शरीर को भगवान वोर कहना। यह भूत-ज्ञायक-शरीर नो आगम-द्रव्य-निक्षेप का विषय है। और इसी प्रकार उसी ज्ञाता के वर्तमान शरीर को 'ज्ञाता' कहना वर्तमान-ज्ञायक-शरीर-नो आगम-द्रव्य-निक्षेप का और उसी के भावि गरीर को 'ज्ञाता' कहना भावि-ज्ञायक-शरीर-नो आगम-द्रव्य-निक्षेप का विषय है । वर्तमान मे उपयुक्त न होने के कारण यह द्रव्य निक्षेप है, शरीर का ग्रहण होने के कारण नो आगम है, वर्तमान वाले ज्ञाता के शरीरो का ग्रहण होने से ज्ञायक शरीर है । इसलिये इसका नाम 'ज्ञायक शरीर नो आगमद्रव्य निक्षेप' कहना युक्त है। ज्ञायक के तीनो कालों सम्बन्धी शरीरों मे से भूत कालीन शरीर भी तीन प्रकार का होता है-च्युत, च्यावित, व त्यक्त । आयु पूर्ण हो जाने पर छटे हुए शरीर को च्युत कहते है। आत्म हत्या द्वारा या किन्ही रोग आदि बाह्य कारणों से छुडाये गए शरीर को च्यावित कहते है। और समाधि मरण द्वारा छोडे गये शरीर को त्यक्त कहत' है । ये तीनों ही शरीर मृत हो जाने के कारण भूत कालीन है। इन मे से भी अन्तिम जो त्यक्त शरीर है वह तीन प्रकार का है-भक्त प्रव्याख्यान समाधि द्वारा छोड़ा हुआ, इगिनी समाधि द्वारा छोड़ा हुआ और प्रायोपगमन समाधि द्वारा छोड़ा गया ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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