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________________ २२ निक्षेप ७५२ ६. द्रव्य निक्षेप यह स्तम्भ पृथिवी कायिक जीव का मृत शरीर है और यह चौकी वनस्पति कायिक का । जीव के साथ रहने वाला शरीर भी दो प्रकार का है-एक अदष्ट कार्माण शरीर और दूसरा यह दृष्ट औदारिक शरीर । चेतन पदार्थ को जीव कहते है सो तो ज्ञानात्मक है। औदारिक शरीर को शरीर कहते है । कार्माण शरीर को कर्म कहते है । अन्य सब दृष्ट पदार्थों को नो कर्म कहते है। भले ही जड़ क्यों न हो, परन्तु कर्म नो कर्म, व शरीर तीनो ही जीव के साथ मिल कर या तो पहले कभी रह चुके है या आगे रहेंगे, इसलिए इनमे भी उपचार से जीव के गुणों का आरोप किया जाना सम्भव है । अतः जीव, शरीर, कर्म, नो कर्म यह चारों ही द्रव्य निक्षेप के विषय बन सकते है। इसी कारण द्रव्य निक्षेप के मूल मे दो भेद हो जाते है-आगम व नो आगम। आगम का अर्थ जीव है, क्योंकि उसमे आगम या शास्त्र का ज्ञान प्रकट होना सम्भव है। नो आगम जड़ पदार्थ को कहत है भले ही साक्षात ज्ञान स्वरूप न हो पर ज्ञानवान जीव का साथी अवश्य है । 'नो' का अर्थ 'किञ्चित' होता है । 'नो आगम' का अर्थ है किञ्चित 'शास्त्र ज्ञान रूप' ज्ञाता का सो शरीर है । आगम द्रव्य निक्षेप का विषय वह जीव है जो किसी शास्त्र विशेष को जानता तो अवश्य है पर वर्तमान मे उसका उपयोग नहीं कर रहा है, हा भूत व भविष्यत काल मे उसका उपयोग अवश्य करता था या करेगा। ऐसे उस ज्ञाता को कदाचित उस शास्त्र का ज्ञाता कहा जाने का व्यवहार है जैसे-समायिक सम्बन्धी सर्व प्रक्रियाओ का जानकार भले ही वर्तमान में समायिक न कर रहा हो, फिर भी सामायिक शास्त्र का ज्ञाता कहा जाता है। ऐसा कहना आगम-द्रव्य-निक्षेप का विपय है, क्योकि आगम का अर्थ जीव है, ऐसा हम बता चुके है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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