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________________ २२ निक्षेप - ७५० ६. द्रव्य निक्षेप ६ शैलकर्म -पृथक पड़ी हुई शिलाओ मे जो प्रतिमाये वनाई जाती है, उन्हे शैल कर्म कहते है। ७ गृह कर्म -गोपुरो के शिखरो से अभिन्न ईट और पत्थर आदि के द्वारा जो प्रतिमाये चिनी जाती है उन्हे गृह कर्म कहते है । ८ भित्ति कर्म -भित्ति से अभिन्न तृणों से जो प्रतिमाये वनाई जाती है उन्हे भित्ति कर्म कहते है । ६ दन्तकर्म -हाथी के दाँत मे जो प्रतिमाये उत्कीर्ण की जाती है उन्हें दन्तकर्म कहते है। १० भेंड कर्म –से घड़ी हुई प्रतिमाओ को भेड कर्म कहते है । (घापु । 'मे भेड सुप्रसिद्ध है' ऐसा कहकर छोड़ दिया है । अत. भेड के भाव के अर्थ भासता नहीं।) ११ अन्य भी-आदि शब्द से कासा, ताबा, चादी और सुवर्ण आदि द्वारा साचे मे ढाली गई प्रतिमाए भी ग्रहण करनी चाहिये । इस प्रकार सद्भाव स्थापना के आधार का कथन हुआ । १२ असद्भाव स्थापना के भेद -द्यूतकर्म की स्थापना मे जो अय पराजय के निमित्त भूत छोटी कौडियां और पॉसे होते है उन्हे अक्ष कहते है, और इनके अतिरिक्त कौड़ियो को वराटक कहते । है इस प्रकार इन दोनो पदो के द्वारा असद्भाव स्थापना का विषय दिखलाया है। (ध । पु । पृ २४६॥ ५) वर्तमान मे तो अमुक गुण किसी मे दिखाई न दे पर पहले कभी ६. द्रव्य निक्षेप वह गुण उसमे था अवश्य या भविप्यत में वह गुण उसमे प्रगट होने वाला है अवश्य, ऐसी स्थिति वाले किसी व्यकि
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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