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________________ २१. अन्य अनेको नय ७२७ २. सर्व नयो का मूल नयो मे अतर्भाव लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहिले तीर की भांति ।" यह लक्षण द्रब्य के अनिर्वचनीय अखण्ड भाव का प्रदर्शन करता है इसलिये आगम पद्धति के 'शुध्द द्रन्यार्थिक व संग्रह' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शध्द निश्चय' नय मे गर्भित होता हैं । ७ अस्तित्व अवक्तत्य नय-- "आत्म द्रव्य आस्तित्व अवक्तव्य नय की अपेक्षा स्वद्रव्य क्षेत्र काल भाव से तथा युगपत स्वपर द्रव्य क्षेत्र काल भाव से अस्तित्व वाला अवक्तव्य है । -(स्व चतुष्टय से) लोहमई, डोरी और कमान के बीच मे रखा हुआ, साधित अवस्था में रहा हुआ और लक्ष्योन्मुख ऐसा, तथा (युगपत स्वपर चतुष्टय से) लोहमई तया अलोहमई, डोरी और कमान के बीच मे रखा हुआ तथा डोरी और कमान के बीच में नहीं रखा हुआ, साधित अवस्था मे रहा हुआ तथा साधित अवस्था में नही रहा हुआ, लक्ष्योन्मुख' तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहिले तीर की भाति ।" यह लक्षण भी आगम पद्धति के तो 'सामान्य द्रव्यार्थिक अथवा नैगम' नयों मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'सामान्य निश्चय' में गर्भित होता है, क्योकि नय नं० ३ व ६ का संयोगी रूप होने के कारण द्वैताद्वैत का ग्राहक है । ८ नास्तित्व अवक्त्तय नय -- 'आत्मद्रव्य नास्तित्व अवक्तव्य नय की अपेक्षा पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव से तथा युगपत् स्वपर द्रव्य क्षेत्र काल भाव से नास्तिव वाला अवक्तव्य है-(पर चतुष्टय से) अलोहमई, डोरी व कमान के बीच मे नही रखा हुआ, साधित अवस्था मे नही रहा हुआ तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे , तथा (युगपत स्वपर चतुष्टय से) लोह मई तथा अलोह मई, डोरी व कमान के बीच में रखा हुआ तथा डोरी और कमान के बीच मे नही रखा हुआ, साधित अवस्था मे रहा हुआ तथा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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