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________________ २१. अन्य अनेको नय ७२४ २ सर्व नयो का मूल नयो में अन्तभाव - २. सर्व नयो का जैसा कि पहिले बताया गया है, मूल नय तो दो मूल नयो को ही हैं -द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक । इनका विशेप अन्तर्भाव विस्तृत परिचय आगम व अध्यात्म दोनो पद्धतियो की अपेक्षा दिया जा चुका है । अब आगे जितने कुछ भी अन्य अन्य नाम वाले नय सामाने आते है, उन सब का पृथक पृथक विस्तार करने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। यदि पूर्वोक्त मूल नयो को , भलीभाति समझ लिया गया है तो जितने कुछ भी अभिप्राय या नय लोक मे हो सकते है, उन सब का किसी न किसी प्रकार इन्ही मूल भेदो मे अन्तर्भाव करके उनका विशेष भाव समझा जा सकता है । उन मूल भेदो से बाहर कोई भी नय हो नहीं सकता, क्योवि. सामान्य व विशेष तथा शुद्ध व अशद्ध, द्रव्य क्षेत्र काल व भाव से वाहर ले क मे कुछ भी शेप नही रहता, जो कि इन से पृथक अपनी कोई स्वतत्र सत्ता रखता हो। इसीलिये यहा पूर्वोक्त असख्याते भेदो मे से नं १२ मे वताये गये प्रवचनसार के ४७ नयो को उन मुल नयो मे गर्भित करके दर्शाया जाता है, ताकि किसी भी नय को गर्भित करने का अभ्यास भी हो जाये, और नयो के भाव समझ लेने की परीक्षा भी हो जाये । इन नयो मे न. ३ से लेकर न . ९ तक के अस्तित्व आदि ७ नये पुर्व कथित सप्त भगी का ग्रहण करके उत्पन्न हुए है । न. १२ से नं. १५ तक के नाम, स्थापना आदि चार नये अगले अधिकार मे प्ररूपित निक्षेपो का ग्रहण करके प्रगट हुए है। और न २८ से नं. ३३ तक के स्वभाव आदि छ नये वस्तु की स्वतत्र कार्य व्यवस्था के पाच समवायो का आश्रय करके कहे गये हैं, जिनका विस्तृत विवेचन 'शान्तिपथ-प्रदर्शन' नाम ग्रन्थ मे किया गयाहै । १. द्रव्य नय “आत्म द्रव्य द्रव्य नय से पट मात्र की भाति केवल चिन्मात्र है" ऐसा द्रव्य नय का लक्षण किया है । लक्षण स्वयं बोल कर बता रहा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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