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________________ २१. अन्य अनेको नय ७२० १. नयो क असख्याते भेद अर्थः--नैगम नय दो प्रकार की है---सामान्य ग्राही और विशेष ग्राही । तहा जो सामान्य ग्राही है वह तो संग्रह नय मे अन्तर्भूत है और जो विशेष-ग्राही है वह व्यवहार नय मे अन्तर्भूत है । इस प्रकार सग्रह, व्यवहार व ऋजुसूत्र तथा तथा शब्दादि तीनो मिल कर एक व्यञ्जन नय इस प्रकार । नय चार है। ४. नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द नय के भेद से नय पाच प्रकार के होते है। तत्वार्थाधिगम "नैगम सग्रह व्यवहार सूत्र शब्दा नया ।" भाष्य १।३४ अथ--नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द ये पाच नय है। (यहा भाष्यकार ने साप्रत, समभिरूढ और एवभूत को शब्द नय के भेद स्वीकार किये है । ) ५. जिस समय नैगम नय सामान्य को विपय करता है उस समय वह सग्रह नय मे गर्भित होता है, और जिस समय विशेप को विषय करता है उस समय व्यवहार मे गर्भित होता है, अतएव नैगमनय का सग्रह और व्यवहार मे अन्तर्भाव करके सिद्धसेन दिवाकर ने छ नयो को माना है । ---सग्रह, व्यवहार ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ व एवभूत । विणेपावश्यक “सिद्धसेनीयाः पुन षडेव नयानभ्युप्णन्तव्य. । भाष्य ।४५य नैगमस्य सग्रह व्यवहारयोस्तर्भाव विवक्षणात् ।" अर्थ-सिद्ध सेन द्विवाकर ने नैगम नय का संग्रह व व्यवहार नयो मे अन्तर्भाव करके छः नय माने है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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