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________________ २१ परिशिष्ट अन्य अनेकों नय १. नयों के असख्यात भेद, २. नयो के भेद प्रभेदो का प्रदशक चट ३. सर्व नयो का मूल नयो मे अन्तर्भाव । १ नयो के असख्याते भेद आगम व अध्यात्म पद्धति के आधार पर द्रव्याथिक व पर्यायार्थिक तथा निश्चय व व्यवहार यही दो मूल नये होती है । वास्तव मे वस्तु का पूर्ण स्वरूप इन दो भेदो मे समाप्त हो जाता है, फिर भी उन का विशेष स्पष्टीकरण करने के लिये उनके अनेको भेद प्रभेद करके दर्शाये गये है । परन्तु नय इतनी ही हो ऐसा नही है । प्रकृत ग्रन्थ मे जो नाम दिये है वे सग्रह नय की अपेक्षा समझना, अर्थात एक एक नय के अन्तर्गत वस्तु के अनक विभिन्न अगो का ग्रहण हो जाता है । वैसे तो नयो की सख्या नही की जा सकती, क्योकि नय वस्तु के अगो के ज्ञान को कहते है और वस्तु अनन्त धर्मात्मक है । अत नय भी अनन्त ही है । परन्तु ज्ञान में जाने गये वे सम्पूर्ण अंग वचन के विषय नही बनाये जा सकते, क्योकि वचन सख्यात मात्र है । अत कथन को अपेक्षा भी नयों के सख्याते भद किये जा सकते है । वचन यद्यपि सख्यात ही है, परन्तु मानसिक विकल्प असख्यात तक सम्भव है । जितने तरह के वचन विकल्प उतने ही नय हो सकते हे इसलिये नय के उत्कृष्ट भेद असख्यात तक हो सकते है । इसलिये विस्तार से नयो का प्ररूपण नही किया जा सकता । एक से लेकर नयों के अनेको भेद किये गये है । जैसे :
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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