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________________ 1 १६ व्यवहार नय २ नय चक्र गद्य । प ६३. व्यवहारः । " ६७७ १० असद्भूत व्यवहार नय का लक्षण “भिवन्नस्तुविषयोऽसद्भूत 1 अर्थ - यह उपरोक्त नौ प्रकार का उपचार यदि एक ही वस्तु के द्रव्य गुण पर्यायो के साथ करने मे आये तो वह सद्भूत व्यवहार है परन्तु भिन्न वस्तु विषयक यही उपचार असद्भूत व्यवहार है । ३ व. न च । २२३ “अन्येषामन्यगुणो 1 स्त्रिविधस्तौद्वावपि ज्ञातव्यस्त्रिविधभेद युतः । २२३ । भण्यतेऽसद्भूत सजातिरितरोमिश्री अर्थ :-- अन्य द्रव्य के गुणो व पर्यायों आदि का अन्य द्रव्य के गुण पर्यायों में उपचार करना असद्भूत व्यवहार है । सजाति, विजाति व मिश्र के भेद से वह उपचार भी तीन प्रकार का है । नोट - उपर के सब लक्षण सैध्दान्तिक भाषा ने लिखे जाने के कारण कुछ कठिन से प्रतीत होते है, परन्तु ऐसा नही है क्योंकि इस प्रकार के उपचार हमारे नित्य के व्यवहार में आ रहे है । उदाहरणार्थ नीचे के उध्दरण देखिये | १प ं. ध. पू । ५३०. “सयथा वर्णादिमतो मूर्त द्रव्यस्य कर्म किल मूर्तम् । तत्संयोगत्वादिह मर्ताः श्रोधादयोऽपि जीव भावाः। ५३० ।” अर्थ :- उसे ऐसा जानना जैसे कि वर्णादिमान मूर्त द्रव्यों से
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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