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________________ ४६ २. अखंडित व खडित ज्ञान का अर्थ वर्तमान के अभिमान को दूर करके अपने जीवन की कमी को देख, शाब्दिक ज्ञान पर संतोष मत कर, इसका कोई मूल्य नहीं । भले ही तेरी धारणा इतनी प्रबल हो कि सारा आगम तुझे याद हो, पर उस सारे आगम ज्ञान का मूल्य एक कौडी भी नही है । सो ही बात आज दर्शाई जायेगी, जरा ध्यानपूर्वक सुन । धेर्य व शांति से विचार, चिढ़ने का प्रसंग मत आने दे, तेरे अपने कल्याण के लिये ही सब कुछ बताया जा रहा है । निज कल्याण को दृष्टि में रख कर, सुने तो अवश्य जानी हो जायेगा । परन्तु यदि पूर्ववत् अब भी उसी शाब्दिक ज्ञान पर इतराता रहा तो भाई ! मर्जी है तेरी । करेगा तो वही जो तुझे अच्छा लगता है, मैं तो केवल संकेत दे सकता हूँ । कुछ दृष्टात बताकर तेरे अन्दर मे उस अभ्यास करने का उपाय जागृत करने का कोई मार्ग तुझे दर्शा सकता हू, पर अपना अभ्यास तुझे दे नही सकता । अतः प्रभो ! आ, तुझे वह अभ्यास करने का क्रम दर्शाये । उसे ही अनेकात - वाद या नयवाद के नाम से पुकारा जाता है । प्रमाण व नय क कल के प्रकरण मे खडित व अखंडित ज्ञान के प्रति संकेत दिया गया था जो अब तक केवल शाब्दिक रूप धारण किए बैठा है, स्पष्ट नही हो पाया है । अतः प्रश्न है कि ज्ञान के अखडितपने से क्या तात्पर्य ? उसी को आज एक दृष्टांत द्वारा स्पष्ट करता हूँ । सुनो । २. अखंडित व खड़ित ज्ञान का अर्थ कल दो बाते बताई थी कि एक ज्ञान होता है प्रतिबिम्ब रूप और एक होता है चित्रणरूप । दोनों ही सत्य हो सकते है यदि वे ज्ञेय वस्तु के अनुरूप हों। इन दोनों में प्रतिबिम्ब तो नियम से अनुरूप ही होता है वह तो झूठा या मिथ्या हो ही नही सकता, पर चित्रित ज्ञान मिथ्या व सम्यक् दोनो प्रकार का हो सकता है क्योकि यह प्रत्यक्ष नही परोक्ष है, दृष्ट विषय सबधी नही अदृष्ट विषय सबधी है। इसका आधार वस्तु नही शब्द है जो वक्ता के मुख से निकलकर आपके कर्ण
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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