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________________ १६ व्यवहार नय ६७३ 'जीव सामान्य मतिज्ञान वाला है या राग द्वेषादि वाला है' यह द्रव्य सामान्य की अपेक्षा अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय के उदाहरण हे । 'संसारी जीव मति ज्ञान वाला है या राग द्वेषादि वाला है' यह द्रव्य पर्याय की अपेक्षा अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय के उदाहरण है । इसे उपचरित सद्भूत भी कहते है । क्योंकि पर सयोगी वैभाविक औदयिक अशुद्ध भावों का द्रव्य के साथ स्थायी सम्बन्ध नही है, न उसके स्वभाव से उनका मेल खाता है अत टे उपचरित भाव कहे जाने योग्य है । ६. शुद्ध सद्भूत व्यवहार नय अब इन्ही को अभ्यास व पुष्टि के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देता हूं। १ वृ द्र स । टी । ६ । १८. "छद्मस्थ ज्ञानदर्शनापरिपूर्णपेिक्षया पुनरशुद्ध सद्भूतवाच्च उपचरित सद्भूत व्यवहार ।" अर्थ - छद्मस्थ जीवों का ज्ञान दर्शन अपरिपूर्णता की अपेक्षा अशृद्ध सद्भूत का वाच्य उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है । २ आ प १० । पृ ८१ अशुद्ध सद्भूत व्यवहारो यथा अशुद्ध गुणाऽ शुद्ध गुणिनोरशुध्द पर्यायाऽ शुध्द पर्यायिणोर्भेद कथनम् ।” अर्थ:-अशुध्द सद्भूत व्यवहार ऐसा है जैसे कि अशुध्द गुण व अशुध्द गुणी मे तथा अशुध्द पर्याय व अशुध्द पर्यायी मे भेद कथन करना । ३ आप । १९ । १३१. “तत्र सोपाधि गुणगुणिनोर्भेद
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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