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________________ - १८. निश्चय नय ६३६ १२. निश्चय नय सम्बन्धी शका समाधान तो एक निश्चय नय ही उपयोगी है, क्योकि इस के द्वारा वस्तु का केवल अभेद व निर्विकल्प सामान्य रूप ही देखा जाता है । निर्विकल्पता के ग्रहण से ज्ञान निर्वि. कल्प और विकल्पों के ग्रहण से ज्ञान विकल्पात्मक हो जाता है । निर्विकल्प ज्ञान ही निराकुल होने के कारण मुमुक्षु को इष्ट है। दूसरे प्रकार से इस की उपादेयता यो भी जानी जा सकती है, कि यह नय निमित्तों आदिक रूप पर के आश्रय का निषेध करके, गुण व दोष सब कुछ उस एक द्रव्य के ही बताता है। इसलिये निश्चय नय से अपने ही जीवन के गुण दोषो का भलीभाति परिचय पा कर, कोई एक मुमुक्ष जीव दोषों को टालने व गुण उपजाने का प्रयत्न करने के लिये अग्रसर होता है । अपने जीवन से अनभिज्ञ केवल व्यवहार नय गम्य निमित्तों की सामर्थ्य को जानने से अपने जीवन का शोधन असम्भव है । इसलिये भी निश्चय नय को उपादेय कहा जाता है। वास्तव में नय तो ज्ञानरूप होने के कारण दोनो ही उपादेय है, हेय व उपादेय तो उन के विषय है, ऐसा जानना। इस प्रश्न के सम्बन्ध मे आगम मे भी काफी चर्चा की गई है । जिसमे से कुछ वाक्य यहा उध्दृत करता हू। सक्षेप कथन करने के लिये यहा मूल वाक्य न देकर उनका अनुवाद मात्र देना ही पयाप्त समझा गया है। का कथन १. प्र. । ता वु ।२ । ६७ शका-~-निश्चय नय किया गया । वह उपादेय । कैसे होती है ?
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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