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________________ १८ निश्चय नय .६१६ ६ शुद्ध निश्चय नय का लक्षण अथः--जीव का शुद्ध स्वभाव वह है जो द्रव्य व भाव कर्मों से रहित हो। एसा शुद्ध ज्ञानी जनों ने शुद्ध निश्चय नय का लक्षण किया है। ५ वृ० द्र० सं०टीका।६।१८ "शुद्ध निश्चय नयात्पुनः शुद्धम खण्ड केवल ज्ञान दर्शन द्वयं जीवलक्षणामिति ।" अर्थ-शद्ध निश्चय से गद्ध अखण्ड केवल दर्शन ज्ञान जीव का लक्षण है। ६ वृ० द्र० स०ाटीका।६।२३ "शुद्ध निश्चय नयेन तु परमात्म स्वभाव सम्यक् श्रद्धानज्ञानानुष्ठानोत्पन्न सदानन्दैक लक्षणं सुखामृतं भुक्त इति ।" अर्थः-शुद्ध निश्चय नय से तो परमात्म स्वभाव के सच्चे श्रद्धान ज्ञान चारित्र द्वारा उत्पन्न ध्रुव आनन्द लक्षण का धारक जो सुखामृत उसे ही जीव भोगता है। ग्रा प ।११।।१२६ 'तत्र निरुपाधि गुणगुण्य भेद विषयकः शुद्ध निश्चयो यथा केवल ज्ञानादयो जीव इति ।" अर्थ-निल्पाधिक (शुद्ध) गुण गुणी को अभेद ।रूप विपय करने वाला शुध्द निश्चय नय है । जैसे जीव को शुध्द केवल ज्ञानादि रूप कहना। भावार्थ-इन सर्व लक्षणो मे क्षायिक शुध्द भावो रूप ही जीव सामान्य को बताया गया है । कारण यही है कि इस दृष्टि मे जीव की शुध्द व्यञ्जन पर्याय ही इस समय मुख्य है । अत. उस रूप ही मानो द्रव्य उसे दिखाई दे
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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