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________________ १८ निश्चय नय ६. शुद्ध निश्चय नय का लक्षण ३ प. प्र. टीका १२१।३६ "शुद्ध निश्चय नयेन तु भेदनयेनस्व देहाद्भिन्ने स्वात्मनि वसति ।" अर्थ-शुद्ध जिश्चय नय से तो यदि भेद करके भी देखा जाये तो भी जीव अपने आत्मा मे ही वसता है, घर या ग्रामादि मे नहीं। ४. नि० सा० । ता० वृi६ “शुद्ध निश्चयेन सहज ज्ञानादि परम स्वभाव गुणानामाधार भूतत्वात्कारण शुद्ध जीव.।" अर्थ ---शुद्ध निश्चय से सहज ज्ञानादि परम स्वभावभूत गुणो का आधार होने के कारण उस पारिणामिक भाव स्वरूप चेतना को कारण-शुद्ध जीव कहते है। ५५० ३० । ३०।३३ 'अर्थ शद्ध नयादेशाच्छुद्धश्चैक विधोपि ___ य । .।३३।" अर्थ -शुद्ध नय से तो आत्मा श द्ध तथा एक ही प्रकार का है। ६ वृ० द० स०।१६।५३ 'योऽसौ रागादिरूपो भाववन्धः कथ्यते सोऽपि श द्धनिश्चयनयेन पूद्गलबन्ध एव ।” अर्थ-वेरागादि भाव वन्ध भी शुद्ध निश्चय नय से पुद्गल वन्ध ही है। भावार्थ --त्रिकाली पारिणामिक भाव मे रागादि है ही नही फिर उन्हे जीव कैसे कह सकते है, अतः निमित्त भूत कर्मो के ही कहने पड़ते है । ७ प० प्र०टीका।६४१७१।१० "संसारिक सुख दु.खं . . . . शुद्ध निश्चय नयेन कर्मजनितं भवति ।" ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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