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________________ १८. निश्चय नय ५६६ २. अध्यात्म नयो के भेद प्रभेद वस्तु के यह अग तो सज्ञादि की अपेक्षा भिन्न होते हुए भी स्व चतुष्ट की सपेक्षा अभिन्न है, इसलिये इनमे वस्तु का अग पना सद्भूत या सत्यार्थ है । परन्तु भिन्न द्रव्यो मे तो स्व चतुष्टय की अपेक्षा ही भिन्नता है, अत उनको वस्तु के अग समझना असद्भ ूत व असत्यार्थ है । इसलिये उस उस द्वैत को ग्रहण करने वाली व्यवहार नय को भी दो भेद हो जाते है- सद्भूत व असद्भूत । वस्तु के सद्भ ूत अग शुद्ध व सशुद्ध के भेद से दो प्रकार है, अतः उन उनके ग्रहण करने से सद्भूत व्यवहार भी दो प्रकार का हो जाता है, शुद्ध सद्भ ूत व अशुद्ध सद्भत । बाह्य पदार्थो का उपरत अद्वैत भी दो प्रकार का है स्थूल व सूक्ष्म अर्थात दूरवर्ती पदार्थों के साथ जैसे धन कुटुम्ब आदि के साथ जीव की एकता, तथा निकटवर्ती पदार्थो के साथ जैसे शरीर के साथ जीव की एकता | स्थूल अद्वैत तो स्थूल उपचार है और सूक्ष्म अद्वैत इषत् उपचार या अनुपचार है । इस प्रकार उसको ग्रहण करने वाले असद्भूत व्यवहार के भी दो भेद हो जाते है - उपचरित असत व अनुपचरित असद्भूत । उपरोक्त प्रकार यहा नयो के निम्न भेद किये गए है । १ मूल भेद - निश्चय व व्यवहार २. निश्चय के भेद - परम शुद्ध निश्चय, शुद्ध निश्चय, निश्चय व एक देश शुद्ध निश्चय । अशुद्ध ३. व्यवहार के भेद-शुद्धसात या अनुपचारित सद्भत, अशुद्ध सद्भुत या उपचरित सद्भत, उपचरित असद्भूत व अनुपचरित अद्भुत ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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