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________________ १७ पर्यायार्थिक नय ५६८ 6. पर्यायार्विक नव विशेष के लक्षण १. वृ. न. च । २०२ " सत्ताऽ मुख्य रूपे उत्पादव्ययो हि ग्रहणाति यो हि । स हि स्वभावानित्यग्राही खलु शुद्ध पर्यायार्थिक । २०२" अर्थ -- सत्ता को गौण करके जो केवल उत्पाद व्यय को ग्रहण करता वह ही निश्चय से स्वभाव अनित्य ग्राही शुद्ध पर्यायार्थिक नय है । २. नय चक्र गद्य । पृ ε “स्वभावागुरुलघुत्वादि द्रव्याणा क्षय भगिना । तेऽनित्य स्वभावोऽसी पर्यायार्थिक निर्मल | ३” अर्थ -- अगुरुलघुत्वादि ही क्षणभागी द्रव्योका स्वभाव है, ऐसा जो कहता है वह स्वभाव अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है | अर्थ पर्याय रूप से प्रतिक्षण सूक्ष्म उत्पाद व्यय होते रहना, अर्थात प्रत्येक क्षण सूक्ष्म अर्थ पर्याय का प्रगट करते रहना वस्तु का स्वभाव है, क्योकि अन्य निमित्त कारणो की अपेक्षा न करके यह स्वत ही होता है । वस्तु के इस स्वभाव को ग्रहण करने वाला होने के कारण इस नय के नाम के साथ स्वभाव विशेषण लगाया गया । वस्तु का अखण्ड स्वभाव या सत् सामान्य यद्यपि नित्यानित्यात्मक है, परन्तु उसके नित्य अग को छोड़कर केवल अनित्य अंश को ग्रहण करता है, इसलिये यह नय अनित्य कहलाता है । क्योकि अन्य से निरपेक्ष केवल अपने अगुरुलघुत्व गुण के ही कारण से उत्पन्न होता है इसलिये यह स्वभाव तथा उसे ग्रहण करने वाला नय शुद्ध है | सामान्य से रहित विशेष अशको पर्याय कहते है, अतध्रुव निरपेक्ष यह उपरोक्त अनित्यता का अश पर्याय शब्द का वाच्य है, इसलिये इसका ग्राहक यह नय भी पर्यायार्थिक है । अत इस
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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