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________________ १७. पर्यायार्थिक नय ५६० ३ पर्यायार्थिक नय के भेद प्रभेद इन चारो प्रकार की पर्यायी को निम्न चार्ट पर से पढ़ा जा सकता है। पर्याय अनादि अनन्त अनादि सान्त सादि अनन्त सादि सान्त । अकृत्रि क्षायिक | स्कन्धो । औदायिक भाव की व्यञ्जनभाव __ पर्याय ।। १ अनादि २ सादि नित्य शुद्ध नित्य शुद्ध क्षण स्थायी चिर स्थायी अन्तर्ममुहूत काल स्थायी व्यञ्जन पर्याय क्षायोपशमिक भाव एक समय औदायिक भाव स्थायी । ६ विभाव । ४ स्वभाव , अनित्य अनित्य अशुद्ध अशुद्ध सिद्धो की ससारियो की शुद्ध अशुद्ध ५ विभाव अनित्य शुध्द इस प्रकार यद्यपि पर्यायो को और भी अनेकों भेदो मे विभाजित किया जा सकता है, परन्तु सबका अन्तर्भाव इन ही मे हो जायेगा । आगम में इन्ही को निम्न नामो के द्वारा कहा गया है । १ अनादि नित्य शुद्ध, २ सादि नित्य शुद्ध . ३. स्वभाव अनित्य शुद्ध, ४. स्वभाव अनित्य अशुद्ध. ५. विभाव अनित्य शुद्ध, ६. विभाव अनित्य अशुद्ध.
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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