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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६८ ७. द्रव्यार्थिक नय दशक परिचय उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक और ,उत्पाद व्यय सापेक्ष सत्ता ग्राहक' यह तीसरा युगल है; 'परम भाव ग्राहक और अन्वय ग्राहक' यह चौथा युगल है; तथा 'कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्धता ग्राहक व कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्धता ग्राहक' यह पांचवा युगल है । ___ इनमे से प्रथम युगल तो चतुष्टय सामान्य को विषय करके केवल इतना बताता है कि यह चतुष्ट वस्तु का अपना ही वैभव है, किसी अन्य का नही । दूसरा तीसरा व चौथा युगल, उस चतुष्टय को खण्डित करके, द्रव्य, काल, व भाव इन तीनों को पृथक पृथक बिषय करते है । क्षेत्र को ग्रहण करने वाले किसी पृथक युगल का ग्रहण नही किया गया है, क्योंकि वह गुण व पर्यायों का अधिष्ठान जो द्रव्य, वह स्वयं ही प्रदेशात्मक माना जाने के कारण, क्षेत्र का उसमे ही अन्तर्भाव हो जाता है । चतुष्टय का प्रथम अग जो 'द्रव्य' उसको पृथक ग्रहण करके, दूसरा नय युगल उसमे गुण गुणी का अभेद व भेद दश तिा है । चतुष्टय का तीसरा अंग जो 'काल' उसको पृथक ग्रहण करके, तीसरा नय युगल उसमे नित्या व अनित्यता का प्रदर्शन करता है। चतुष्टय का चौथा अग जो 'भाव' उसको पृथक ग्रहण करके, चौथा नय यगल द्रव्य के एक अखण्ड भाव तथा अनेक गुणो के पृथक पृथक भावो के बीच अभेद व भेद की सूचना देता है । इस प्रकार ये पहले चार युगल स्व चतुष्टय का आश्रय करके वस्तु सामान्य का स्वरूप दशति है अर्थात जीव अजीव आदि सब ही द्रव्यो की सामान्य सत्ता की चित्र विचित्रता का प्रतिपादन करते है। अब पांचवाँ युगल जो कर्मोपाधि निरपेक्ष व कर्मोपाधि सापेक्ष वाला है, वह वस्तु विशेष का प्रतिपादक है, अर्थात द्रव्य सामान्य को न बताकर केवल जीव द्रव्य की विशेषता को बताता है। शास्त्रीय नय सप्तक मे संग्रह व व्यवहार युगल का प्ररुपण करते हुए यह बताया जा चुका है कि द्रव्य या सत् सामान्य के दो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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