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________________ ७. द्रव्यार्थिक नय दशक परिचय १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६६ शुद्ध निश्चय तो तत्व को सर्वथा निर्विकल्प व अनिर्वचनीय वताता है, परन्तु इस प्रकार तो जगत का कोई भी व्यवहार चल नही सकता । तत्व का सीखना व सिखाना भी असम्भव हो जाये, गुरु शिष्य सम्बन्ध विलुप्त हो जाये । अतः विश्लेषण द्वारा उसमे भेद डालकर कहने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नही है । अवक्तव्य को इसी प्रकार वक्तव्य बनाया जा सकता है । यद्यपि इस प्रकार पदार्थं खण्डित हुआ सा प्रतीत होने लगता है, परन्तु साथ साथ शुद्ध द्रव्यार्थिक पर भी लक्ष्य रखे तो, ऐसा नही हो सकता । विशेष रहित केवल सामान्य खरविषाण वत् असत् है, भेद से निरपेक्ष अभेद असत् है । उस विशेष सापेक्ष सामान्य तत्व को वक्तव्य बनाकर समझने व समझाने के व्यवहार को सम्भव बनाना ही इस नय का प्रयोजन है । १५ द्रव्यार्थिक नय दशक ७. द्रव्यार्थिक नय दशक अहो | गुरु देव की उपकारी बुद्धि, कि अदृष्ट पदार्थ को भी मानो जबरदस्ती पिला देना चाहते है । शब्दों की असमर्थता की पर्वाह न करते हुए, तथा अनिर्वचनीय बताकर भी, वचनो के द्वारा ही उसे वह मानो प्रत्यक्ष कराने का प्रयास कर रहे है । ऐसा अपूर्व अवसर प्राप्त करके भी यदि मैं वस्तु को पचा न सकू, तो इससे बडा प्रमाद और कौनसा होगा । परिचय द्रव्यार्थिक नय का प्रकरण चलता है । पहिले वस्तु को सामान्य व विशेष दो भागो मे विभाजित करके, सामान्य सत्ता का ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है तथा विशेष सत्ता का ग्राहक पर्यायार्थिक नय है ऐसा बताया गया । वस्तु की सामान्य सत्ता के दो रूप सामने रखे - विशेष निरपेक्ष और विशेष साक्षेप । इन दोनों रूपों पर से सामान्य वस्तु का अवलोकन करने के कारण उसको विषय
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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