SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४४ ६ अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय ३. क. पा. १।१८२।२१६ “अशुद्धद्रव्यार्थिकः पर्यायकलकाति द्रव्यविषय व्यवहारः।" अर्थ--जो पर्यायकलक से युक्त द्रव्य को विषय करनेवाला व्यवहार नय है वह अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है । ४ प्र सा ।त प्र । परि ।नय न० ४६ "अशुद्धनयेन घटशराववि शिष्टमृण्मात्रवत्सोपाधिस्वभावम् ।" अर्थ-आत्मद्रव्य अशुद्धनय से घट और राम पात्र से विशिष्ट मिट्टी मात्र की भांति, सोपाधि स्वभाव वाला है । ५ आ. प ।१५ ।पृ १११ 'शु द्धद्रव्यार्थिकेन शुद्धस्वभाव , अशुद्ध व्यार्थिककेनाश द्ध स्वभावः।" शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से शुद्ध स्वभाव है और अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय से अश द्ध स्वभाव है । ६. वृ० द्र० स. ।४५ ११९७ “यच्चाभ्यन्तरे रागादिपरिहार स पुनरशु द्धनिश्चयेनेति ।" अर्थ-जो अन्तरग मे रागादि का त्याग कहा जाता है वह अशुद्ध निश्चय से ही है । (क्योकि श द्ध निश्चय मे तो रागादि को अवकाश ही नही ।) ७ स. सा ।१४ आत्मा ५ प्रकार से भेद रूप दीखता प. जयचन्द है-कर्म पुग्दल का स्पर्श वाला, नारकादि पर्यायो मे भिन्न भिन्न स्वरूप, शक्ति के अविभाग प्रतिच्छेद बढे भी है और घटे भी है....इससे नित्य नियत दीखता नही, दर्शन ज्ञानादि अनेक गुणो से विशेष रूप, मोहरागद्वेषादि
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy