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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४५० ५. शुध्द द्रव्यार्थिक नय अर्थ – शुद्ध द्रव्य ही है अर्थ या प्रयोजन जिसका सो शुद्ध द्रव्यार्थिक है । २ प वि 19 १५७/८४ "शुद्ध वागतिवर्तितत्वमितरद्वाच्यं च तद्वाचक शुद्धादेशमिति प्रभेदजनक शुद्धेतरकल्पित ।" अर्थ – शुद्ध नय तत्व को अनिर्वचनीय व - शुद्ध कहता है, तथा अशुद्ध नय उसी मे भेद उत्पन्न करने वाला है । ३. प्र. सा त प्र ।२।३३ " शुद्ध द्रव्य निरूपणाया परद्रव्यसपकीसंभवात्पर्यायाणां द्रव्यान्तः प्रलयाच्च शुद्ध द्रव्य एवात्मावतिष्ठते । ४ निरूपण मे पर द्रव्य के अ - वास्तव मे शुद्ध द्रव्य के सम्पर्क का असम्भव होने से और पर्याये द्रव्य के भीतर प्रलीन हो जाने से आत्मा शुद्ध द्रव्य ही रहता है । प्र सा । तप । परि । नयन ४७ " शुद्धनयेन केवलमृणमात्रवन्निरूपाधिस्वभावम् ।" अर्थ - आत्मा शुद्ध नय से, केवल मिट्टी मात्र की भाति, निरुपाधि स्वभाव वाला है । ५ प ध । पू । ७४७, ७५४ “तत्त्वमनिर्वचनीय शुद्धद्रव्यार्थिकस्य भवति मतम् । गुणपर्ययवद्रव्य पर्यायार्थिकनयस्यपक्षोऽयम् ।७४७। न द्रव्यं नापि गुणो न च पर्यायो निरशदेशत्वात् । व्यक्त न विकल्पादपि शुद्धद्रव्यार्थिकस्य मतमेतत् ।७५४।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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