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________________ - en १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४७६ ५. शुध्द द्रव्यार्थिक नय इन्ही दो को अनेक दृष्टियो से देखा व वर्णन किया जा सकता है। जैसे कि पर्याय भेदो से निरपेक्ष शुद्ध, पर्याय भेदो से सापेक्ष अशुद्ध उत्पाद व्यय निरपेक्ष शुद्ध, उत्पाद व्यय सापेक्ष अशुद्ध इत्यादि । इसलिए द्रव्याथिक नय के पहले दो मूल भेद किये गये-शुद्ध द्रव्याथिक व अशुद्ध द्रव्याथिक । तथा इनके प्रतिविम्व स्वरूप, आगे दस भेद किये गये-१ उत्पाद व्यय निरपेक्ष शुद्ध द्रव्याथिक २. उत्पा दव्यय साक्षेप अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ३ भेद' कल्पना निरपेक्ष शृद्ध द्रव्यार्थिक, ४ भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ५. कर्म निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक, ६ कर्म सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ७ स्व द्रव्यादि चतुष्ट ग्राही शुद्ध द्रव्यार्थिक, ८ परद्रव्यादि चतुष्टय विच्छेक अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ९ परमपारिणामिक भाव ग्राही शुद्ध द्रव्यार्थिक, १० गुण व त्रिकाली पर्यायो मे अनुगत पिण्ड अन्वय नामवाला अशुद्ध द्रव्यार्थिक । इन सब भेदो के, क्रम से पृथक पृथक लक्षण उदाहरण व प्रयोजन दर्शाये जायेगे और फिर अन्त में जाकर उन सवका परस्पर सम्मेल बैठा कर इनको एक अभेद मे गर्भित कर दिया जायेगा। अब इनके पृथक पृथक लक्षणादि सुनिये। जैसा कि पहिले बताया जा चुका है कि वस्तु भले ही वह महासत्ता ५ शुद्ध द्रव्यार्थिक स्वरूप हो या अवान्तर स्वरूप, द्रव्य क्षेत्र काल ____नय व भाव चतुष्टय स्वरूप है । ये चारो ही विकल्प सामान्य व विशेष दो प्रकार से देखे जा सकतेहै । अनेक विशषों या भेदो मे अनुगत एक सत्ता को सामान्य कहते है । सामान्य चतुष्टयस्वरूप द्रव्य समान्य कहलाता है। और विशेष चतुष्टयस्वरूप द्रव्य विशेषकहलाता। इन दोनो मे से विशेष द्रव्य का यहा अधिकार नही है, क्योकि वह पर्यायार्थिक नय का विषय है । सामान्य द्रव्य मे ही द्रव्यार्थिक नय का व्यापार होता है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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