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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६६ ३ द्रव्यार्थिक नय सामान्य के कारण व प्रयोजन ही निश्चय नय का वाच्य है । यहां यह समाधान है कि व्यवहार नय का जो कोई वाच्य है, वह ही सम्पूर्ण विकल्पो के अभाव मे निश्चय नय का वाच्य है । ६. लक्षण नं ६ (इतना ही मात्र द्रव्य नहीं है) - १ प ध ।।५६६ "व्यवहारः स यथा स्यात्सद्दव्यं ज्ञानवाश्च जीवोवा । नेत्येतावन्मात्रो भवति स निश्चयनयो नयाधिपतिः ।५९९।" अर्थ-जैसे 'सत् द्रव्य है, अथवा ज्ञानवान जीव है' इस प्रकार का जो कथन है, वह व्यवहार नय है । तथा 'इतना ही नही है' इस प्रकार का जो व्यवहार के निषेध पूर्वक कथन है, वही नयो का अधिपति निश्चय नय है । द्रव्याथिक नय के लक्षण व उदाहरण सम्बन्धी तो वात आ ३ द्रव्यार्थिक नय चुकी अब इन लक्षणों का कारण सुनिये । सामान्य के कारण अनेकों शकाये चित्त मे उठ रही होगी। व प्रयोजन सम्भवतः विचारते हो कि एक ही लक्षण क्यों न किया, छ. लक्षण करने की क्या आवश्यकता हुई। तथा अन्य भी अनेको शंकाये इस स्थल पर तथा आगे आगे इस द्रव्याथिक नय के संबध मे उठनी स्वभाविक है । उन सव का समाधान तो अवसर आने पर यथा स्थान किया जायेगा । अत. उनके संबंध में तो कुछ धैर्य से कामले, और यहां केवल इतना जानले, कि यह छः लक्षण वास्तव मे छ: नही है, एक ही है। जैसा कि पहिले दृष्टांत के अन्तर्गत स्पष्ट कर दिया गया था, यह छ वास्तव में एक अभेद की सिद्धि के लिये है । क्योकि द्रव्य वास्तव में एक रस ही होता है, सर्व अर्थ व व्यञ्जन पर्यायों का पिण्ड ही होता है, त्रिकाली शुद्ध व अशुद्ध सकल
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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