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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६७ २ द्रव्यार्थिक नय सानान्य के लक्षण ११ त अनु।२६ “अभिन्नक कर्मादिविषयो निश्चयोः नयः ।” अर्थ --जिसमे को कर्म आदि सब विषय अभिन्न हो वह निश्चय है। (अन ध. ॥१११०२।१०८) १२. प. ध ।पू० ६५ "द्रव्यादेशादवस्थित वस्तु ।" अर्थ-वस्तु द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से अवस्थित है । १३ प ध पू० १६१४ 'लक्षमेकस्य सतो यथाकथचिद्यथा द्विवाकरणम् । व्यवहारस्य तथा स्यात्तदितरथा निश्चयस्य पुन १६१४।" अर्थ---जिस प्रकार एक सत् को जो किसी प्रकार से दो रूप करना व्यवहार का लक्षण है, उसी प्रकार उस व्यवहार नय से विपरीत अर्थ एक सत् को दो रूप न करना निश्चयनयका लक्षण है। १४ स पा० १६ मे प० जयचन्द “जीव को एक नित्यादि कहना द्रव्याथिक का विषय है ।" ४ लक्षण नं०४ (अवक्तव्य है) -- - - - १ प ० ध पू० ।६२६ 'स्वयमपि भूतार्थत्वाद्भवति स निश्चय नयो हि सम्यक्त्वम् । अविकल्पवदतिवागिव स्यादनुभवै कगम्यवाच्यार्थ ।६२९।" अर्थ-स्वय ही यथार्थ अर्थ को विषय करने वाला होने के कारण निश्चय से वह निश्चय नय सम्यक्त्व है । बहुरि वह
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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