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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६४ २. द्रव्याथिक नय सामान्य के लक्षण अर्थ --(पूर्वोत्तर पर्यायो में अनुगत व्यक्तिगत द्रव्य को तद्भाव सामान्य कहते है, और अनेक द्रव्यो तथा उनकी जातियो मे सदृश्य भाव से रहने वाला , 'सत्' सादृश्य सामान्य कहलाता है ।) ऐसा तद्भाव लक्षण सामान्य की अपेक्षा तो अभिन्न और सादृश्य लक्षण सामान्य की अपेक्षा कथचित भिन्न व कथञ्चित अभिन्न जो वस्तु, उसका स्वीकार करने वाला द्रव्याथिक नय है। २. ध. ६ १६७।१० "द्रवति द्रोष्यति अदुद्रुवत्तास्तान् पर्याया निति द्रव्यम् । एतेन तद्भावसादृशलक्षणसामान्ययोर्द्वयोः रपि ग्रहणम्, वस्तुन उभयथापि द्रवणोपलभात् ।. . . . सदित्येक वस्तु, सर्वस्य सतोऽविशेषात् । . .अथवा सर्व द्विविध वस्तु जीवाजीवभावाभ्या।. .अथवा सर्व वस्तु विविध द्रव्यगुणपर्याय. । . . .एवमेकोत्तर क्रमेण बहिरगान्तरगर्मिणौ विपाट्येते यावदविभागप्रतिच्छेद प्राप्तविति । एष सर्वेऽप्यनन्तरविकल्प. सग्रहप्रस्तार. नित्य वाचकभेदेनाभिन्नः द्रव्यमित्त्युच्यते । द्रव्यमेवार्थ. प्रयोजनमस्येति द्रव्याथिक ।" अर्थ --जो उन उन पर्यायो को प्राप्त होता है, प्राप्त होगा अथवा प्राप्त हुआ है, वह द्रव्य है । इस निरुक्ति से तद्भाव सामान्य और सादृश्य सामान्य (देखो ऊपर वाला उद्धरण) दोनो का ही ग्रहण किया गया है, क्योकि, वस्तु के दोनो प्रकार से भी उन पर्यायो को प्राप्त करना पाया जाता है । अव द्रव्य के भेद को कहते है-'सत्' इस प्रकार से वस्तु एक है, क्योकि, सबके सत् की अपेक्षा कोई
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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