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________________ श्री वीतरागायनमः नय दर्पण भाग २ मंगलाचरण प्रमाण नय निक्षेप से प्रत्यक्ष कर तिहुंलोक सव व्यापक उसी आलोक मे खो भूल जाऊ शोक सब ॥ III आगम पद्धति (वस्तुभूत) इस ग्रन्थ के पूर्वार्ध भाग में वस्तु का सागोपाग चित्रण दर्शाकर उस के सामान्य व विशेष अगों का विशद परिचय दिया जा चुका है । एक अनेक तत् अतत् नित्य-अनित्य व सत्-असत् आदि अनेकों विरोधी धर्मो को युगपत धारण करने वाली उस जटिल वस्तु को शब्दों द्वारा कहना कितना कठिन है, यह वात भली भांति वहा वताई जा चुकी है । फिर भी गुरु शिष्य प्रवृत्ति के निमित्त उस को जिस किसी प्रकार भी वक्तव्य बनाना इष्ट है, क्योकि अनिर्वचनीय या निर्विकल्प मात्र कह देने से तीर्थ की प्रवृत्ति चलनी असम्भव है । अतः अवक्तव्य भी उस वस्तु को वक्तत्व बनाने के लिये, उसका विश्लेषण करके उसे अनेको विकल्पो से विभाजित कर दिया गया । उन मे से किसी एक विकल्प को उठाकर तमुखेन उस वस्तु का विवेचन करना नय कहलाता है, यह भी बताया जा चुका है । वह नय ज्ञान, अर्थ व शब्द के भेद से तीन प्रकार का होता है । ज्ञान मे ग्रहण किये गये सत् व असत् विकल्पो को आश्रय करके कुछ
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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