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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४४४ ११ एवभूत नय के कारण व प्रयोजन कालमे रहना नहीं बन सकता है, पदो मे एकार्थ वृत्ति समास पाया जाता है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है,क्योकि भिन्न पदो का एक अर्थ मे रहना बन नही सकता है। तथा इस नय मे जिसप्रकार पदो का समास नही बन सकता है, उसी प्रकार घ, ट आदि अनेक वर्गों का भी समास नहीं बन सकता है, क्योकि, अनेक पदो के समास मानने मे जो दोष कह आये है वे सब दोष अनेक बों के समास मानने मे भी प्राप्त होते है । इसलिये एवभूत नय की दृष्टि मे एक ही वर्ण एक अर्थ का वाचक है । अत घट आदि पदो में रहने वाले च्, ट, और अ, अ, आदि वर्णमात्र अर्थ ही एकार्थ है, इसप्रकारके अभिप्राय वाला एवभूत नय समझना चाहिये। एक समय मे देखने पर वस्तु वैसी ही दिखाई देती है इसलिये ११ एवभूत नय उसका नाम भी वैसा ही होना चाहिये । समय वदल के कारण व जाने पर वस्तु भी बदल जाती है । अत समय वदल जाने प्रयोजन पर उसका वाचक शब्द भी अवश्य वदला जाना चाहिये। जो वस्तु इस समय है वह अन्य समय नही रहती, या यो कहिये कि इस समयकी वस्तु वही है अन्य नही, इसीलिये उसके वाचक एक शब्द का अर्थ भी वही है अन्य नही । और इस प्रकार एक अर्थ का वाचक शब्द और एक शब्द का वाच्य अर्थ एक ही होना चाहिये अनेक नही । वाच्य वाचक सम्बन्ध में क्षण प्रतिक्षण दीखने वाला यह एकत्व ही इस नय का कारण है । यदि एक शब्द के अनेक अर्थ माने जायेगे तो उस शब्द को सुन कर श्रोता के ज्ञान मे किसी निश्चित अर्थकी सिद्धि न हो सकेगी। इसी प्रकार एक ही पदार्थ के लिए भी यदि भिन्न भिन्न समयो मे एक ही शवद का प्रयोग करेगे तो भी श्रोता को भ्रम उत्पन्न हुए बिना नहीं रह
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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