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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४४० ५ जैनतर्क भाषा पृ २३ " शब्दाना स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रिया विष्टमर्थं वाच्यत्वेनाम्युपगच्छन्नेवम्भूत. ।” १०. एवभूत नय का लक्षण अर्थ -- स्वप्रवृत्ति की निमित्तभूतः क्रिया से आविष्ट अर्थ को ही वाच्यरूप से शब्द बताता है, ऐसा एवभूत नय है । ६ विशेपावश्यक भाष्यगा २७४३ तहात पितेव ।” [6. ... । जह घट सद्द चेप्टावया अर्थ - जिस प्रकार घट शब्द चेष्टा विशेष को दर्शाता है, तो उसका वाच्य अर्थ भी वैसा ही होना चाहिये । ७ का अ 1२७७ “येन स्वभावेन यदा परिणतरूपे तन्मयत्वात् । तत्परिणाम साधयति योऽपि नयः सोऽपि परमार्थः ।२७७। अर्थ – वस्तु जिस समय जिस स्वभाव से परिणमनरूप होती है उस समय उस परिणाम से तन्मय होती है । इसलिये उसी परिणाम रूप सिद्ध करता है, वह एवभूत नय है । यह नय परमार्थ रूप है । ८ वृ न च ।२१६ २१९ ' ' यत्करोति कर्म देही मनवचनकायचेष्टातः । तत्ततखलु नामयुत एवभूतो भवेत्स नय । २१६ । प्रज्ञापन भाविभूतेऽर्थे यः सहि भेद पर्याय । अथ स एवभूत. सभवतो मन्यध्वमर्थेषु । २९९ । अर्थ -- जीव जो जो भी कर्म मनवचनकाय की चेष्टा से करता है, उस उस नाम वाला ही वह होता है, ऐसा एवंभूत नय कहता है ।२१६। भावि व भूत पदार्थ मे जो पर्यायों
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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