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________________ १५. शब्दादि तीन नय ४१३ ५. शब्द नय का लक्षण सम्वन्धाद् वस्तुनो भेदं चाभिधत्ते । नहि विरुद्धकृत भेदमनुभवतो वस्तुनो विरुद्ध धर्मायोगो युक्तः । एव संख्या काल कारक पुरुषादिभेदाद् अपि भेदोऽम्युपगन्तव्यः । तत्र संख्या एकत्वादिः, कालोऽतीतादिः, कारक कर्त्रादि, पुरुष: प्रथम । पुरुषादिः । क्रमश: स. म. २८ ।३१६ ।श्ल ५ उध्दत "विरोधिलिंग संख्यादिभेदाद् भिन्नस्वभावताम् । तस्यैव मन्यमानोऽय शब्दः प्रत्यव - तिष्ठते ॥५॥ अर्थः-जैसे इन्द्र, शक्र और पुरन्दर परस्पर पर्यायवाची शब्द एक अर्थ को द्योतित करते हैं, वैसे ही 'तट, तटी, तटम्' परस्पर विरुद्ध लिग, लक्षण, वधर्य वाले शब्दो से पदार्थो के भेद का ज्ञान भी होता है । भेदों को अनुभवने वाली वस्तु को विरुद्ध धर्मो से संयुक्त कहना विरुद्ध नही है । इसी प्रकार संख्या - एकत्व आदि काल अतीत आदि, कारक- कर्त्ता आदि, और पुरुष - प्रथम पुरुप आदि के भेद से शब्द और अर्थ मे भेद समझना चाहिये । कहा भी है J ( परस्पर विरुद्ध लिंग संख्या आदिक के भेद से वस्तु मे भेद मानने को शब्द नय कहते है | ) ३. लक्षण नं० ३ ( व्याभिचार निवृत्ति ) १ स सि ।१ ।३३ ॥ ५१७ “ लिङ्गसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्ति- । परः शब्द नय ।" अर्थ - लिंग सख्या और साधन आदि के व्याभिचार की निवृत्ति करने वाला शब्द नय है । त सा. ११४८|३६
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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