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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४१०' ६. शब्द नय का लक्षण की अतीतपने का विरोध होने के कारण, 'जिसने विश्व को देख लिया है' ऐसे विश्वदृशिपने के भूत काल का 'उत्पन्न होगा' इस शब्द के अनागत काल के साथ, एकार्थता नहीं हो सकती । यदि उपचार या भूतकाल में भविष्यत पने का आरोप करके यह एकार्थता स्वीकार की जायेगी, तो परमार्थ से काल भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ की व्यवस्था न हो सकेगी। इसी प्रकार एक दूसरा प्रयोग हसी मे किया जाता है , आओ! तुम समझते हो कि मै रथ से जाऊगा, तुम क्या जाओगे, क्या तुम्हारा पिता भी कभी रथ मे बैठकर गया है ? इस प्रकार साधन या कारक भेद मे भी पदार्थ की अभिन्नता स्वीकार की गई है, क्योकि 'प्रहासे मन्य वाचि पुष्पन्मन्यतेरस्मदेकवच्च , अर्थात हसी में ' मन्य, धातु के प्रकृतिभूत होने पर दूसरी धातुओं में उत्तम पुरुष के बदले मध्यम पुरुप हो जाता है और मन्यसि धातु को उत्तम पुरुष हो जाता है, जोकि एक अर्थ का वाचक है, इस प्रकार का नियमव्याकरण को मान्य है। परीक्षा करने पर यह भी ठीक प्रतीत नही होता,क्योकि ऐसा मानने पर मै पकाता हु' 'तू पकाता है 'इन प्रयोगो मे भी अस्मद और युष्मद साधन का अभेद होने के कारण एकार्थ पने का प्रसग प्राप्त हो जायेगा अर्थात यहां भी ‘में पकाता है' तु पकाता हु, ऐसा कहना पडेगा। - पुरुष भेद मे भी एकार्थता नही की जा सकती क्योकि आओ ? मानते हूँ' ऐसा प्रयोग युक्त नही । बल्कि 'आओ | तुम मानते हो कि मै रथ से जाऊँगा' इस प्रकार के परम भाव से ही यह निर्देश करना चाहिये ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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