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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४०६ २. ध० ।पु० १ । पृ० ८६ ।६ " शब्दपृष्ठतोऽर्थग्रहणप्रवण : नयः ।" ३ श्ल० वा० 1१1३३ /७२ अर्थ – शब्द को ग्रहण करने के बाद अर्थ ग्रहण करने में समर्थ - शब्द नय है । ६. शब्द नय का लक्षण भेदाद्भिन्नमर्थं शपतीति शब्द नय. । " (प्र. क मा. पृ० २०६ ) अर्थ – काल, कारक, लिंग, संख्या, साधन, उपग्रह, आदि के भेदो - से भेद रूप शब्दों का भिन्न भिन्न अर्थ जो ग्रहण करता है वह शब्द नय है । शब्द "कालकारक लिगसंख्यासाधनपग्रह ४.आ प.१६ ।पृ० १२४ " शब्दात् व्याकरणात् प्रकृतिप्रत्ययद्वारेण सिद्ध शब्द: शब्दनय. ।” अर्थः-- जो शब्द व्याकरण, प्रकृति प्रत्यय आदि से सिद्ध हो उसे शब्द न कहते है । २. लक्षण नं ० २ ( भिन्न लिंगादि वाले शब्दों का भिन्न अर्थ २ प्र. क. मा. पृ० २०६ १ श्ल वा ।१ ३३ । श्ल ६८ " कालादिभेदतोऽर्थस्य भेद यः प्रतिपादयेत् । सोऽत्र शब्दनय. शब्द प्रधानत्वादुदाहृत. १६८ | " अर्थ - काल सख्या कारक आदि के भेद से जो अर्थ के भेद का प्रतिपादन करे, शब्द प्रधान होने के कारण उसे ही यहा शब्द नय कहा गया है । "कालकारकलिगसख्यासाधनोपग्रह भेदाद्भित्रमर्थं शपतीति शब्दो नयः । "
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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