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________________ २. शब्द व ज्ञान सम्बन्ध २१२ प्रत्यक्ष व परोक्ष ज्ञान प्रतिनिधित्व कर सकते हों । यह सारी बाते किसी एक ही दृष्टांत में उपलब्ध हो सके यह असभव है, क्योकि एक ही स्थान पर तो यह सारी बाते उसी फल मे पाई जा सकती है, अन्यत्र नही । इसीलिये उसका पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व करने वाला कोई एक ही दृष्टान्त तो दिया ही नही जा सकता । हा अनेकों दृष्टान्तो का सम्मेल करके उसे कदाचित बताया जाना संभव है । मै उसे इस रूप मे बता सकता है, वह पपीते जितना बड़ा होता है, उसका वजन आध सेर से तीन पाव तक होता है, वह पपीते की ही भांति ऊपर से साफ होता है, अनानास की भाति फुनसियों वाला नही होता, वह सेब की भांति कठिन होता है, पपीते की भाति नरम नही, उसका रग भी ऊपर से सेव की भाति लाल होता है पर चीरने पर अन्दर से वह पीला निकलता है जैसे कि आम, उसमे बीज खरबूजे जैसे होते है, सरधे की भाति कुछ-कुछ गन्ध होती है, और स्वाद अंगूर व नीबू मिलाकर जैसा हो जाये लगभग वैसा होता है । इस प्रकार उसके रूप रंग गंध स्वाद व बीज आदि बतलाने के लिये मैने पृथक-पृथक दृष्टान्त देकर, आपके अनुमान मे लगभग उस फल के अनुरूप चित्र बनाने का प्रयत्न किया। यह ठीक है कि तत् संबंधी स्पष्ट व विशद ज्ञान तो तभी हो सकना सभव है जबकि उसका आप प्रत्यक्ष करले, पर फिर भी उसे बताने के लिये 'उपरोक्त दृष्टान्तो व शब्दों पर से आपके अनुमान ने खेचकर कोई धुन्धली सी रूपरेखा ये आपके हृदय पट पर अवश्य बना दी है, जो भले ही पूर्णरूपेण उस फल के अनुरुप न हो परन्तु लगभग उसके अनुरूप अवश्य है । यदि फलो का एक ढेर आपके सामने कदाचित लाया जाय तो आप उन रूपरेखाओ के आधार पर तुरन्त यह पहिचान लेगे कि यही वह फल है जिसके सबंध मे उस दिन बताया गया था। इसलिये भले स्पष्ट न सही पर यह धुन्धली सी सशय के साथ वर्तने वाली रूपरेखाये भी उस फल सबधी प्रत्यक्ष ज्ञानवत ही है । इसे परोक्ष ज्ञान कहते है । यह यद्यपि प्रत्यक्षवत विशद नहीं होता
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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