SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८५ १५. शब्दा हि तीन नय १. व्यञ्जन नय सामान्य परिचय १ ध.।पु हापू १८३।२४ "अर्थगत भेद की अप्रधानता और शब्द निमित्तक भेद की प्रधानता रखने वाले उक्त नयों के शब्द व्यवहार में कोई विरोध नही आता" (अर्थात इन नयो का काम केवल वाचक शब्दो मे तर्कणा उत्पन्न करना है, पदार्थ मे भेद या अभेद देखना नही। यही वह दूसरा कारण है, जिसका संकेत कि ऊपर किया गया है । शब्द क्योंकि स्वयं पर्याय है इसलिये इसको विषय करने वाला नय भी पर्यायाथिक होना चाहिये ।) ___ यहा पुन' शका हो सकती है कि शब्द तो पर्याया वाची ही नही द्रव्य वाची भी होते है, फिर शब्दो को विषय करने वाला नय भी दोनो रूप होनी च हिये । इसका उत्तर भी आगम में निम्न प्रकार दिया गया है। १.ध ।पु ६ पृ १८१८ "क्रिया और गुणादिक रूप अर्थगत भेद से अर्थ का भेद करने के कारण सग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र नय अर्थ नय है । शेष नय शब्द के पीछे अर्थ ग्रहण मे तत्पर होने से शब्द नय , है ।" (और वह शब्द क्योकि पर्याय है, इसलिये इनका अन्तर्भाव मूल दो भेदों के पर्यायाथिक नय मे मे ही किया जा सकता है ।) २. ध ।पु. १०।पृ १२।१० “एक तो शब्द नय की अपेक्षा दूसरी पर्याय का सक्रमण मानने मे विरोध आता है। (अर्थात इनका विषय जैसे कि आगे बताया गया है एकत्व है द्वैत नही) । दूसरे वह शब्द भेद से अर्थ के कथन करने मे व्यावृत रहता है। अत. उसमे नाम निक्षेप व भाव निक्षेप की ही प्रधानता रहती है, पदार्थो के भेदो की प्रधानता नही रहती, इसलिये शब्द नय (व्यञ्जन
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy