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________________ । १४, ऋजु सूत्र नय- । .. . ३७३ । । ५. ऋज सत्र नय . . . .: सम्बन्धी शकाये . वह लोक मे किसी भी अर्थ क्रिया की सिद्धि करता प्रतीत नही होता । अत-व्यञ्जन पर्याय प्रमाण ही पदार्थ . को स्वीकार करना योग्य है । अत. स्थूल पदार्थो की एकता . दर्शा कर लौकिक व्यवहार को सम्भव बनाना इस नय का . .. ., प्रयाजन हैं.। . . . . . . , , ५. ऋजुसूत्र नय. इस नय सामान्य व विशेष के उपरोक्त '' सम्बन्धी शंकाये . विस्तृत कथन में उठने वाली कुछ शंकाओं . . . . . का समाधान यहा कर देना योग्य है । १. शंका.- वर्तमान काल प्रमाण निविशेष ही वस्तु की सत्ता मानने से, तथा विशेषण-विशेष्य व कार्य कारणादि भावों ___का सर्वथा अभाव मानने से तो सकल व्यवहार के लोप का प्रसंग प्राप्त होता है। . .. .. उत्तर:- इस शंका का समाधान आगम में निम्न प्रकार किया है। . . क. पा. १ह१९६ । २३२ १२ “सत्येवं सकल व्यवहारोच्छेद. प्रस ..जतीति चेत्, त, नय विषय प्रदर्शनात् ।" . अर्थ:--शंकाकार कहता है कि इस प्रकार सामान्य रहित केवल विशेष की सत्ता मानने पर तो सकल व्यवहार का उच्छेद प्राप्त होता है। इस के उत्तर में आचार्य. कहते है कि नही, क्योकि यहां पर ऋजुसूत्र नय का विषय दिखलाया - गया है । (अर्थात यह कथन किसी एक दृष्टि विशेष से देखने पर सत्य- प्रतीत होता है । लौकिक दृष्टि से वह दृष्टि विचित्र है, अत उस प्रकार देखते समय उस विचारक ब्यक्ति विशेप को लौकिकअभिप्राय शेप रह ही नही जाता। और इसी प्रकार लौकिक अभिप्राय जागृत हो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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