SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७१ १४ ऋज़ सूत्र नय ४ ऋजु सूत्र नय के भेद प्रभेद व लक्षण प्रकार सर्व ही स्थल विशेषों की एकता को ग्रहण करके उसकी सर्वथा स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार करने वाला स्थूल ऋजुसूत्र है। वह पहिले भव मे देव था या तिर्यन्च अथवा मरण के पश्चात भी कुछ होगा यह प्रत्यक्ष न होने के कारण असिद्ध है, अतः वर्तमान मे जितना कुछ वह दृष्ट हो रहा है उतना ही सत् है । उसके अतिरिक्त भूत व भविष्यत की पर्यायो के साथ उसका कोई सम्बन्ध जोड़ा नहीं जा सकता । ऐसा स्थूल ऋजुसूत्रनय ग्रहण करता है । व्यञ्जन पर्याय की स्वतंत्र सत्ता इसका विषय है। - अब इसी की पुष्टि व अभ्यास के लिये कुछ आगमोक्त लक्षण भी उद्धृत करता हूं । - १ वृ. न च ।२१२ “मनुजादियपर्याय. मनुष्य इति स्वक' स्थितिषु वर्तमानः । यो भणति तावत्कालं स स्थूलोभवति ऋजुसूत्र. १२१२।" अर्थ-अपनी अपनी स्थिति प्रमाण काल में वर्तमान अर्थात जन्म से मरण पर्यन्त मनुष्यादि पर्यायो को जो उतने काल तक के लिये टिकने वाला एक स्वतत्र पदार्थ मानता है वह स्थूल ऋजुसूत्र नय है। २..नय चक्र गद्यापृ १४ “एकसस्मिन्समये वस्तुपर्याय यस्तु पश्यति । ऋजु सृत्रो भवेत् सूक्ष्मः, स्थूलो स्थूलार्थ गोचरः । अर्थ- एक समय मात्र काल मे प्रमाण स्थायी वस्तु की पर्याय को जो स्वतत्र सत्ता के रूप में देखता है वह सूक्ष्म ऋजुस्त्र है । इसी प्रकार वर्ष आदि स्थूल काल प्रमाण स्थायी वस्तु की पर्याय जो स्वतत्र सत्ता क रूप में देखता है वह स्थूल ऋजुसूत्र है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy