SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ १४ ऋजु सूत्र नय ३. ऋजु सूत्र नय के ____ कारण व प्रयोजन अर्थ-इस नय की अपेक्षा 'शुल्क कृष्ण होता है' ऐसा भी नही । कहा जा सकता, क्योंकि कृष्ण और शुल्क दोनो पर्याये भिन्न काल मे रहने वाली है, अतः उत्पन्न हुई कृष्ण पर्याय मे नष्ट हुई शुल्क पर्याय का सम्बन्ध नही हो सकता इस प्रकार ऋजुसूत्र नय के स्वरूप का निरूपण किया। ६ लक्षण नं ६ (वर्तमान पर्याय के अनुसार नाम देना) - १ ध.।६।१७३।५ “यदैव धान्यानि मिमीते तदैव प्रस्था, प्रतिष्ठन्त्यास्मिन्निति प्रस्थ वयपदेशात् ।" (रा वा.।१।३३।७।६७।११) अर्थ--जब धान्यो को मापता है तभी इस नय की दृष्टि मे प्रस्थ (अनाज मापने का पात्र विशेप ) हो सकता है, क्योकि जिसमे धान्यादि स्थिति रहते है, उसे निरूक्ति के अनुसार प्रस्थ कहा जाता है। यद्यपि इस प्रकार के एकत्व का ग्रहण कुछ अटपटासा प्रतीत ३ ऋजुसूत्र नय होता है, और समस्त व्यवहार का लोप करता के कारण व हुआ प्रतीत होता है, परन्तु सूक्ष्म दृष्टि स प्रयोजन तत्व का निरीक्षण करने वाले के लिये न यह अटपटा है और न व्यवहार का लोप करने वाला । उस सूक्ष्म दृष्टि वाले का लक्ष्य लौकिक व्यवहार पर है ही नहीं, अत. वह व्यवहार उसकी दृष्टि मे भ्रम मात्र है । अटपटा इसलिये नही दीखता कि उस प्रकार से देखने पर वस्तु वैसी ही दिखायी अवश्य देती है । आप लोगो को भी यह बात तभी समझ मे आ सकेगी जब कि आप वस्तु के अविभागी द्रव्य क्षेत्र. काल व भाव स्वरूप चतुष्टय को लक्ष्य मे लेकर - इसे समझने का प्रयत्न करेगे, अन्यथा तो आप
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy