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________________ १४ ऋजु सूत्र नय ३४३ २. ऋजु सूत्र नय सामाण्य के लक्षण कहते है। जहां द्रव्य का प्रदेश स्वयं भाव स्वरूप और भाव स्वयं द्रव्य प्रदेशस्वरूप है वहां यह आधार आधेय भाव रूप द्वैत भी सम्भव नही हो सकता । इसी प्रकार क्रियमान-कृत, भुज्यमान-मुक्त, बध्यामान-बाध्य, बन्ध्य-बन्धक, बध्य-घातक, दाह्य-दाहक, ग्राह्य-ग्राहक, वाच्य-वाचक आदि अन्य भी अनेकों द्वैत भाव इस एकत्व दृष्टि में सम्भव नही। ५ लक्षण न. ५-इसके अतिरिक्त निविशेष एकत्व मे द्रव्य-पर्याय द्रव्य-भाव, गुण-गुणी, पर्याय-पर्यायी, अश-अशी अंग-अंगी, विशेषणविशेष्य, गौण-मुख्य आदि द्वैत भी स्थान नहीं पा सकते । ६ लक्षण न ६-तात्पर्य यह कि इस सूक्ष्म निविशेष दृष्टि में भेद सूचक अनेकता को किसी भी प्रकार अवकाश नही । द्रव्य की अपेक्षा भी एकता है । क्षेत्र की अपेक्षा भी एकता है, काल की अपेक्षा भी एकता है, और भाव की अपेक्षा भी यहा एकता है। किसी भी प्रकार अनेकता को यहां अवकाश नही । ७ लक्षण न. ७ -भूत व भविष्यत पर्यायो को छोड़ कर यह नय केवल वर्तमान की एक पर्याय को सत्स्वरूप अंगीकार करता है, क्योकि भूतकाल की पर्याय तो विनष्ट होने के कारण और भविष्यत की अभी अनुत्पन्न होने के कारण अभाव स्वरूप है। असत् अर्थ क्रियाकारी नही हो सकता, अत. उसको वस्तु भूत मानने से क्या लाभ ? वर्तमान पर्याय मात्र ही सत् है। इसीलिये कहना चाहिये कि जो चावल पक रहे है, वे वर्तमान मे पके हुए ही है, क्योकि कुछ अश मे पाक विशेष वहा मौजूद है । इसका खुलासा आगे इसके उद्धरणो पर से हो जायेगा। 5 लक्षण न. ८ -दूसरी बात यह भी तो है कि एकत्व ग्राहक इस दृष्टिय मे दो पर्यायों को परस्पर मे मिलाकर कोई एक द्रव्य देखा भी
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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