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________________ १३. संग्रह व व्यवहार नय ३२६ . .. ६. सग्रह व व्यवहार - नय समन्वय यहा तक संग्रह व व्यवहार इन दोनों के लक्षण व उनके भेद ६. सग्रह व व्यवहार आदि दर्शा दिये गये । अब कुछ शकाओं नय समन्वय का समाधान करने मे आता है। १. शंकाः-संग्रह नय को शुद्ध द्रव्याथिक और व्यवहार नय को अशुध्द द्रव्याथिक क्यों कहा जाता है ? उत्तर -संग्रह नय संग्रह रूप प्ररूपणा को विषय करता है, क्योंकि सत्ता या द्रव्य के रूप मे अभेद वस्तु को ग्रहण करता है। इसलिये वह द्रव्याथिक अर्थात सामान्य ग्राही नय की शुध्द प्रकृति है । व्यवहार नय सत्ता भेद या द्रव्य भेद से वस्तु को ग्रहण करता है, इसलिये वह द्रव्याथिक नय की अशुध्द प्रकृति है । व्यवहार नय को द्रव्याथिक नय की अशुध्द प्रकृति कहने का कारण यह है, कि व्यवहार नय यद्यपि सामान्य धर्म की प्रमुखता से वस्तु का ग्रहण करता है और इसलिये वह द्रव्याथिक है, परन्तु फिर भी वह सामान्य अर्थात अभेद मे भेद मानकर प्रवृत्त होता है इसलिये वह द्रव्याथिक होते हुए भी उसकी अशुध्द प्रकृति है । इसका यह अभिप्राय है कि सत्ता, सामान्य में उत्तरोत्तर भेद करने वाला व्यवहार नय है। . . . २. शंकाः-संग्रह नय केवल सत्ता सामान्य को ही ग्रहण नही करत अपितु उत्तर या अवान्तर भेदो को भी ग्रहण करता है, फिर इसमे व व्यवहार नय मे क्या अन्तर है ? उत्तरः-सग्रह नय के शुध्द संग्रह व अशुध्द संग्रह दो भेद है । शुध्द संग्रह महासत्ता को और अशुध्द संग्रह अवान्तर सत्ता को
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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