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________________ १३ सग्रह व व्यवहार नय ३२२ . ४. व्यवहार नय सामान्य पदार्थ असख्यात प्रदेश वाला है, अमरूद नाम का उपरोक्त फल अनन्त प्रदेश या परमाणु वाला है ऐसा क्षेत्र भेद का उदाहरण है । काल कृत भेद पर्याय भेद को कहते है । यद्यपि तात्विक दृष्टि से उपरोक्त द्रव्य गत भेद भी पर्यायकृत है पर साक्षात बदलते हुए दिखाई न देने के कारण उनमे द्रव्य पने का व्यवहार होता है । मनुष्य की वालक युवा व वृध्द अवस्थाये अथवा उपरोक्त अमरूद की खट्टी, मीठी, ताजी व बासी आदि अवस्थाये काल कृत भेद के अन्तर्गत आती है, क्योकि इनमे होने वाला परिवर्तन प्रत्यक्ष देखा जाने के कारण, इनको स्वतत्र द्रव्य स्वीकार नहीं किया जाता । इनका व्यवहार अवस्थाओ या पर्यायों रूप से ही करने में आता है । भाव कृत भेद पदार्थ मे गुण गुणी विकल्प उत्पन्न करके किया जाता है, जैसे “जीव ज्ञान दर्शन आदि गुणो का आधार है, अथवा सत् उत्पाद व्यय व ध्रुव स्वभाव वाला होता है "ऐसा कहना । अखण्ड पदार्थ मे चारो ही प्रकार से भेद डालना व्यवहार नय का काम है। उदाहरणार्थ जीव द्रव्य को संसारी मुक्त कहना द्रव्य गत व्यवहार है, जीव द्रव्य को असंख्यात प्रदेश वाला कहना क्षेत्रगत व्यवहार है, मनुष्य सामान्य को बालक युवा व वृध्द तीन अवस्थाओ वाला कहना काल गत व्यवहार है तथा जीव द्रव्य को ज्ञानादि गुणों वाला कहना भावगत व्यवहार है । इन चारों प्रकार के भेदों को तथा मुख्यतः काल कृत भेद को आगे ऋजुसूत्र नय का विषय भी बनाया जायेगा परन्तु इन दोनों नयों के ग्रहण मे महान् अन्तर है, जो आगे यथा स्थान बताया जायेगा। संग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये अभेद विषय के, द्रव्य क्षेत्र काल व भाव रूप चतुष्ट की अपेक्षा, अवान्तर भेद प्रभेद या विशेष दर्शाना व्यवहार नय का लक्षण है । सत् सामान्य जीव व अजीव के भेद से द्वि रूप है या जीव द्रव्य- संसारी व मुक्त के भेद से द्विरूप
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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