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________________ १२. नैगम नय ३००० ७. नैगम नय के भेदों का समन्वय इसका द्रव्याथिकपना नष्ट नही होता । क्योकि जैसा कि पहले बताया जा चुका है, लक्ष्य-लक्षण, विशेष्य-विशेषण अथवा कारण-कार्य आदि द्वैत-भाव द्रव्याथिक दृष्टि मे ही उत्पन्न किये जा सकते है। एकत्व ग्रहक पर्यायाथिक मे ऐसा कोई भेद डाला नहीं जा सकता। पृथक अकेली पर्याय का विचार करना यहा अभिप्रेत नही है । इस द्वैत भाव के ग्रहण के कारण पर्याय को विषय करने पर भी इसका द्रव्याथिकपना नष्ट नही होता । क्योकि जैसा कि पहिले' बताया जा चुका है, लक्षण-लक्ष्य, विशेषण-विशेष्य अथवा कारण-कार्य आदि द्वैत भाव द्रव्याथिक मे ही उत्पन्न किये जा सकते है। एकत्व ग्राहक पर्यायार्थिक ऐसा कोई भेद डाला नही जा सकता। ११. शंका--द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक व द्रव्य पर्यायार्थिक नैगम मे क्या अन्तर है ? उत्तर-दो धर्मियो मे एकता दर्शक द्रव्यार्थिक नैगम है, दो धर्मो मे एकता दर्शक पर्यायार्थिक नैगम है और धर्मी व उस के किसी धर्म मे एकता दर्शक द्रव्य पर्यायाथिक नैगम है । सग्रह व व्यवहार इन दोनो के विषयो मे, अर्थात द्रव्य के अभेद स्वरूप व भेद स्वरूप में गौण मुख्य भाव से एकता दशांना द्रव्यार्थिक गम का काम है । शुद्ध व अशुद्ध पर्यायो मे गौण मुख्य भाव से एकता दश निा पर्यायर्थिक नैगम का काम है और एक ही पदार्थ के सामान्य भाव के साथ उसी की शुद्ध व अश, पर्याय की एकता दश ना द्रव्य पर्यायाथिक नैगम का काम है । १२ शंका.--सामान्य व विशेष से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-प्रत्येक पदार्थ द्रव्य क्षेत्र काल व भावइस चतुष्टय स्वरूप है । इन चारो ही बातो मे सामान्य व विश ष पढा जा सकता है । अनेक व्यक्तिगत द्रव्यो मे' अनुगत
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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