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________________ १२. नैगम नय ६. शंका भूत व भविष्यत पर्याये वर्तमान वत् कैसे देखी जा सकती है ? - २६५ ७. नैगम नय के भेदो का समन्वय उत्तर - यह बात भली भांति समझा दी गई है कि नैगम नय का व्यापार वस्तु को त्रिकाली पर्यायों के अखण्ड पिण्ड रूप से देखना है अथवा वस्तु से सद्भाव व असद्भाव की पर्वाह न करके मात्र ज्ञानात्मक संकल्प मे उसके दर्शन करना है । जिस ज्ञान मे वस्तु की त्रिकाली पर्यायें फिल्म के फोटुओ वत् वर्तमान में ही पृथक पृथक यथा स्थान जड़ी हुई दिखाई देती है, उसके लिये क्या भूत और क्या भविष्यत् ? वहां तो जो कोई भी 'फोटो उठाकर विचार करो सो वर्तमान ही है । अथवा ज्ञानात्मक संकल्प में जिस किसी भी बात का विचार करें, सो तत्क्षण प्रत्यक्ष होने के कारण वर्तमान ही है । ज्ञानात्मक संकल्प के लिये भूत व भविष्यत कोई वस्तु है ही नही । इसी शंका का समाधान श्री राजवार्तिक मं निम्न प्रकार किया है ।- भाविसंज्ञाव्यवहार इति । तन किं कारणम् ? भूत द्रव्यासन्नि धानात् । भूत हि कुमारतण्डुलादिद्रव्यमाश्रित्य राजौद - नादिका भाविनी संज्ञा प्रवर्तते, नच तथा नैगमनय वषये किञ्चिद् भूत द्रव्यमस्ति यदाश्रना भाविनी संज्ञा विज्ञायते ।" रा. वा ।९।३३।३।६५ " स्यादेतत् नाय नैगमनयविषय अर्थ – शकाकार का कहना है कि वर्तमान में ही राजकुमार को - राजा कहना अथवा तंदुल को भात कहना तो कोई नैगम नय का विषय प्रतीति नही होता, क्योकि यह तो केवल
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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