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________________ १२. नैगम नय २८ ६. द्रव्य पर्याय नैगम नय ___ उदाहरणार्थ 'चैतन्य पना कहो या आनन्द पना कहो सब सत् रूप ही तो है' ऐसा कहने मे चैतन्य या आनन्द तो व्यञ्जन पर्याय है और सत् सामान्य द्रव्य है । इस प्रकार द्रव्य सत् पर से व्यञ्जन पर्याय के सत् का संकल्प करना शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है । इसी की पुष्टि व अभ्यास निम्न उद्धरणो पर से किया जा सकता है। १. श्लो वा । पु ४ । पृ ४५ "जीव को सत् चित् रूप निर्णय का सकल्प (शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम नय है)।" २. रा. वा. हि. ।१।३३।१६६ "चित्सामान्य है सो सत् है (ताकू यह नैगम नय सकल्प करै है ) । यहा 'सत्' ऐसा शुद्ध द्रव्य है, सो तो विशेपण है तातै गौण है। 'चित्' है सो व्यञ्जन पर्याय है, सो विशेष्य है तातै मुख्य है । यहू शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम भया ।" शुद्ध द्रव्यार्थिक के विषयभूत सत् सामान्य पर से स्वभाव अनित्य या शुद्ध पर्यायार्थिक के विषयभूत सत् विशेष' का परिचय देता है, इसलिये शुद्ध द्रव्यपर्याय नय है । पर्याय के दोनो भेदों में से भी काल स्थायी व्यञ्जन पर्याय को मुख्यरूपेण ग्रहण करता है, इसलिये व्यञ्जन पर्याय नय है। तथा ज्ञानाकार में द्रव्य सत् व पर्याय सत् ऐस द्वैत मे अद्वैत का सकल्प करता है इसलिये नैगम है । अत इसका 'शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम नय' ऐसा नाम सार्थक है । यह तो इसका कारण हुआ और व्यञ्जन पर्याय के अस्तित्व का परिचय देना इस का प्रयोजन है। ४. अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नयः- अशुद्ध अर्थ पर्याय पर से अशुद्ध द्रव्य का सकल्प करना अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नय है । अशुद्ध शब्द का अर्थ तो औदयिक
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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