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________________ १२ नैगम नय २८६६ द्रव्य पर्याय नँगम नय पर से, अर्थात् शुद्ध द्रव्या पर से अर्थ व व्यञ्जन पर्यायों की शुद्ध सता सामान्य का अथवा अशुद्ध पर्यायो पर से अशुद्ध द्रव्यो का परिचय देना इसका प्रयोजन है। ___शुद्ध द्रव्य का अर्थ यहा भी पूर्ववत् अभेद द्रव्या अर्थात द्रव्या के सामान्य अखण्ड एक रस रूप का ग्रहण है जैसे सत् । परन्तु अशुद्ध द्रव्य का अर्थ यहा औदयिक भाव में स्थित अशुद्ध द्रव्या पर्याय है, जैसे ससारी जीव । शुद्ध पर्याय से यहा किसी एक त्रिकाली गुण का या उसके क्षायिक भाव का ग्रहण होता है । तथा अशुद्ध पर्याय से किसी एक गुण की अशुद्ध पर्याय का अथवा अशुद्ध द्रव्या पर्याय का ग्रहण करना । २ शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम नयः-= शुद्ध द्रव्य पर से शुद्ध अर्थ पर्याय का सकल्प करना इस नय का सक्षिप्त लक्षण है। यहां शुद्ध द्रव्य या शुद्ध पर्याय के साथ प्रयुक्त शुद्ध शब्द का अर्थ सहज स्वभाव है, क्षायिक भाव नही । द्रव्य का सहज स्वभाव 'सत्ता सामान्य' है जो पारिणामिक भाव स्वरूप होने के कारण शुद्ध द्रव्याथिक का विषय है, अत: शुद्ध है। पर्याय का सहज स्वभाव, जैसा कि स्वभावअनित्य पर्यायाथिक नय युगल का कथन करते हुए आगे बताया जायेगा, पर्याय का क्षणिक 'सत्' है, जो स्वभाव व विभाग दोनो प्रकार की, शुद्ध व अशुद्ध पर्यायों मे तथा अर्थ व व्यञ्जन पर्यायो मे समान रूप से देखा जाता है । अत. या इस प्रकरण मे सर्वत्र ही शुद्ध द्रव्य का अर्थ द्रव्य की त्रिकाली सत्ता या 'सत्' सामान्य है और शुद्ध पर्याय का अर्थ पर्याय का क्षणिक सत् है । यद्यपि त्रिकाली अखण्ड द्रव्य के अस्तित्व में पर्यायों की अपेक्षा भेद डालना व्यवहार नय गत अशुद्धता कहा जाता है, परन्तु यहा वह विवक्षा नही है। यहां तो द्रव्य, गुण या पर्याय का अपना
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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