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________________ १. पक्षपात व एकान्त ६. आगम मे सब कुछ नहीं क्या किसी भी साहित्य को वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्ण कहा जा ६ आगम मे सव सकता है , अर्थात् जो कुछ वहा लिखा है उसके अति कुछ नही रिक्त कोई भी नई बात किसी के हृदय मे उत्पन्न ही न हो, क्या यह संभव है ? आज हम देख रहे है नित्य नई नई बातें वैज्ञानिको की बुद्धि मे आ रही है, जो आज से पहिले कही लिखी हुई न थी। जो भी नई बात ध्यान मे आती है वह ही साहित्य का एक अग बन जाती है, और इस प्रकार बराबर वैज्ञानिक साहित्य मे वृद्धि होती जा रही है। इसलिये आध्यात्मिक विज्ञान की दिशा में भी तुझे यही समझना चाहिये, कि इस सबधी जो साहित्य या आगम आज मुझे उपलब्ध है वह पूर्ण हो ऐसा नही है । यह तो पूर्ण का अनन्तवां भाग भी नहीं है। इसके अतिरिक्त बहुत कुछ और है, जो इस मार्ग मे आये वैज्ञानिकों की विचारणाओ मे, कदाचित स्वतत्ररूपेग आगेपीछे आ जाना संभव है । आगम के अतिरिक्त यदि कोई भी नई बात सामने आती है तो उसके प्रति जो तेरे अन्दर आज कुछ सशय सा दिखाई देता है, यह उसी पक्षपात की सकीर्ण दृष्टि से निकल रहा है, जो बता रहा है कि तू अभी वैज्ञानिक नहीं बन सका है। क्या बड़े से बड़ा विद्वान भी यह दावा कर सकता है, कि बस जो मंने जान लिया उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं, संभवत. एक वर्ष का बालक भी - अकस्मात् ही आपको ऐसी बात बता दे, जिसको सुनकर आप आश्चर्य मे पड जाये। भले ही वह उतनी तथा वे सब बाते न जानता हो जितनी और जो कि आप जानते है,परन्तु एक नई बात जो उसने अब बताई है वह अवश्यमेव ऐसी है जो कि आप नही जानते । इसलिये यह भी कोई नियम नहीं कि विद्वान लोग ही कोई नई बात खोज सकते है । कदाचित् मूर्ख व तुच्छ बुद्धि जीव भी कोई ऐसी बात मानव के सामने ला सकता है, जिससे की मानव अब तक अपरिचित रहा हो। बस इसी प्रकार भले ही मै या आप इस तुच्छ दशा मे आगम के पार
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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