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________________ १२ नैगम -नय २६ ४ .द्रव्य नैगम नय भिन्न जातीय द्रव्यों मे लक्ष्य लक्षण भाव होना असम्भव है । तब द्रव्य पर से द्रव्य का संकल्प करना इसका क्या अर्थ ? ___ जैसा कि पहिले भली भांति स्पष्ट किया जा चुका है कि कल्पना म गुण गुणी आदि भेद करने से वस्तु मे भेद नही हो जाता फिर भी भाषा मे तो भेद दीखता ही है । ,व्य का अदृष्ट रूप किसी को समझाने के लिये उसका कुछ न कुछ लक्षण करना पड़ता है । तव उस एक के अन्दर ही लक्षण लक्ष्य भेद उत्पन्न हो जाता, जैसे 'सद्रव्यलक्षणम् या 'गुणपर्ययवद्रव्यम्' यह दो लक्षण द्रव्य सामान्य के करने मे आते है, और 'उपयोगो लक्षणम्' या 'ज्ञानवाश्च जीवो' ऐसे लक्षण जीव द्रव्य विशेष के करने मे आते है, तथा इसी प्रकार ही पुग्दल आदि द्रव्यों के भी यथायोग्य रूप से कुछ न कुछ लक्षण करने में आते है । ____ तहा यद्यपि 'सत्' व 'द्रव्य' कोई भिन्न भिन्न वस्तुए नही है, फिर भी 'सत् को द्रव्य कहते है' या 'सत् द्रव्य है' या 'द्रव्य सत् है' इस प्रकार कहा जाता है । इसी प्रकार जो गुणपर्यायवान है वही द्रव्य है, फिर भी 'गुणपर्यायवान द्रव्य है' ऐसा कहा जाता है। इस प्रकार एक ही के अन्दर लक्षण लक्ष्य भेद करके एक के आधार पर दूसरे का परिचय दिया जाता है। सर्वत्र ऐसा व्यवहार प्रचलित है । लक्षण उसे कहते है जिसके द्वारा या जिस पर से किसी विवक्षित वस्तु को अन्य वस्तुओ से पृथक करके दर्शाया जाये। और लक्ष्य उसे कहते है जिसे कि दर्शाया जाये । इस प्रकार दोनों मे द्वैत- भासने लगता है । यह कार्य मात्र ज्ञान मे सकल्प द्वारा किया जाता है, वस्तु मे नही । - लक्षण को सर्वत्र गौण किया जाता है और लक्ष्य को सदा मुख्य क्योकि जो बात समझनी अभीष्ट हो वहीं मुख्य होती है, जिसके द्वारा समझायी जाये उसकी प्रमुखता नहीं होती । द्रव्य अदष्ट है और उसके कुछ कार्य व स्वभाव दृष्ट है। उन दृष्ट कार्यों व स्वभावो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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