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________________ २६४ १२. नैगम नय J ( अर्थ - जो क्रिया प्रारम्भ कर दी गई है - जैसा कि भात आदि पाचन विधि को प्रारम्भ करके भात पक गये है इस ३. भत वर्तमान व भावी नैगम नय प्रकार, उस कार्य को सिद्ध हो पूछने पर जो कह देना, सो 2 गया हुआ ही लोक में वर्तमान नैगम नय है । २०८ । करना प्रारम्भ कर दिया है पर अभी पूरा नही हुआ है, ऐसा अर्थ निष्पन्न या अनिष्पन्न कोई कार्य या वस्तु निष्पन्न वत् कह दी जाती है - जैसे " भात पकता है" ऐसा कहना सो वर्तमान नैगम है | ) २ नय चक्र गद्य पृ. १२ “अनिष्पन्न क्रिया रूप निष्पन्न गति स्फुटं । नैगमो वर्तमान. स्यादोदन पच्यते यथा ॥ २ ।” " वर्तमान काले परिणमतोऽनिष्पन्न क्रिया विशेषान् वर्तमान काले निष्पन्न वत् कथन वर्तमान नैगम. ।” ( अर्थ - अनिष्पन्न क्रिया को स्पष्ट रूप से निष्पन्न कह देना वर्तमान नैगम है-जैसे " भात पकता है" ऐसा कहना ॥२॥ वर्तमान काल मे परिणमन करने वाले परन्तु अनिष्पन्न कार्य विशेष को वर्तमान मे निष्पन्न वत् कहना वर्तमान नैगम है 1 ) यह इस नय के उद्धरण हुए, अब इस के कारण व प्रयोजन देखिये | कल्पना द्वारा किया गया निष्पत्ति का निर्णय तो इस का कारण है, और साधक के प्रति बहुमान उत्पन्न करके स्वय अपने जीवन को कुछ प्रेरणा देना अथवा साधक को उत्साह प्रदान करना इस नय का प्रयोजन है । इस प्रकार नैगम नय के काल कृत भेदो का निरुपण करके यह सिद्ध कर दिया गया कि त्रिकाल वर्ती पर्यायों में से कोई भी एक
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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